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________________ श्री विवाह पश्चाशिका. करे. ( जाय ) अने दरेक स्थाने एक एक समय मुधी स्थिर रहे, त्यारे त्यारे तेओ काळधी अप्रदेशी पुद्गला कहेवाय के. तथा जे परमाणुओ वर्णथी एक गुण अथवा एक गुण पीतादिक वर्णवाळा होय, गंधथी एक गुण सुरभि आदि गंधवाळा होय, रसथी एक गुण तिक्त (कडं ) आदि सवाळा होय, तथा स्पर्शथी एक गुण रुक्ष (लुखुं ) ने एक गुण शीत स्पर्शवाळा अथवा एक गुण रुक्ष ने एक गुण उष्ण स्पर्शवाळा अथवा एक गुण स्निग्ध एक गुण शीत स्पर्शवाळा अथवा एक गुण स्निग्ध एक गुण उष्ण स्पर्शवाळा होय, ते परमाणुओ भावथी अप्रदेक्ष पुद्गलो कहेवाय छे. ४६. अपएगा ओ एए विवरीअ सपएसगा सया भणिया । भाकादखि अपएसा थोत्रा तिनि य असंखगुणा ॥ ४७ ॥ अर्थ - - ए पूर्व गाथामां कहेला अप्रदेश पुद्गलोथी जे विपरीत होय, तेने निरंतर सप्रदेश पुद्गला कह्या छे. एटले के जे परमाणुओबे के तेथी अधिक परस्पर मळेला होय, ते द्रव्यथी सप्रदेश पुद्गलो जाणवा. जे बे आदि परमाणुओना स्कंध वे आदि आकाश प्रदेशने अवगाहन करीने रहेल होय ते क्षेत्रथी समदेश पुद्गलो जाणवा. जे परमाणु स्कंधो वे समयथी आरंभीने असंख्याता समय सुधीनी ( भिन्न भिन्न आकाश प्रदेशमां ) स्थितिवाळा होय, ते सर्वे काळी समदेश पुद्गलो जाणत्रा तथा जे परमाणु स्कंध वे गुण वर्णादिथी आरंभीने अनंतगुण वर्णादिवाळा होय, ते सर्वे भावथी सप्रदेश पुद्गलो जाणवा. हवे अप्रदेश अने समदेश पुद्गलोनुं अल्प बहुत्व कहे छे:-भावथी अप्रदेशी पुद्गलो साथी थोडा छे, तेथी काळ अमदेशी पुद्गलो असंख्य गुणा छे, तेथी द्रव्य अमदेशी पुद्गलो असंख्य गुणा छे, अने तेथी क्षेत्र अप्रदेशी पुद्गलो असंख्य गुणा छे, ४७.
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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