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________________ (७) मूढ तथा भाषांतर. : आहारगस्स विदेहा तेयाकम्माण सबलोगो य । ओरालियस्स कज्जं केवलधम्माइयं भणियं ॥९॥ 'अर्थ-आहारक शरीग्नी विषय महाविदेह क्षेत्र पर्यंत छ, तथा तैजस अने कार्मण शरीरनो विषय सर्व (समय) लोकमां छे केमके जीव केवळी समुद्घात करे छे, त्यारे ते सर्व लोकमां न्यापी जाय छे.. हवे ते पांचे शरीरनुं प्रयोजन (पांचमो भेद) कहे है: भौदारिक शरीरनुं प्रयोजन धर्म, केवलज्ञानादिक, तथा सुख दुःखादिकनी माप्ति एटले अनुभव करवो ते छे. ९. थूलसुहम च रुवं एगअगाइ कज्जयं कहियं । वेउदियस्स आहारस्स संदेहविच्छेययं भणियं ॥ १० ॥ अर्थ-स्थूल अमे सूक्ष्म एवां एक अथवा अनेक रूपो करवां ए वैक्रिय शरीरनु कार्य-प्रयोजन कहलं छे, तथा सूक्ष्म पदार्थना संबंधमां थयेला संशयनो विनाश करवो, (आहारक शरीरवडे केवळी पासे जइ पुछी लेवु) इत्यादिक आहारक शरीरर्ने प्रयोजन कमु के १०... तेजससरीरकज्ज आहारपायं सुए समस्खायं ।। सावाणुग्गहणं पुण कम्मणस्स भवंतरे गहियं ॥११॥ अर्थ-खाधेला आहाग्नो परिपाक करवो तथा कोइने शाप आपवो के कोइना पर अनुग्रह करवो (आशिष देवी), ए तेजस शरीर प्रयोजन छे, एम श्रुतमां कडं छे. तथा एक भवमाथी बीजा भवमा गति करवी, ऐ कार्यण शरीरनुं प्रयोजन छे. ११. हवे ए पांचे शरीरचं प्रमाण (छठो भेद) कहे के
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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