SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूल तथा भाषांतर. आरगर्नु, ए रीते प्राणत, आनत. सहस्रार, शुक्र, लांक, ब्रह्म, माहेर. सनत्कुमार, इशान, सौधर्म, भवनपति अने ज्योतिषी ए सब देवोन रुप उत्तरोत्तर अनंतगणुं हीणुं छे. ज्योतिषी देवथी व्यंतग्नु रुप अनंतगुण हीन छ, तेनायी चक्रवर्तीनु रुप अनंतगुण हीन छे, तेनाथी वासुदेव- रुप अनंतगुण हीन छे, तेनाथी बळरामर्नु रूप अनंतगुण हीन छे, तेनाथी मंडलिक राजानुं रुप अनंगगुण हीन छ, त्यार पछीना वीजा राजाओ अने सर्वे मनुष्योनुं रुप छ ठाणगत छ. ते छ स्थान आ प्रमाणे-अनंत भाग हीन १, असंख्य भाग हीन २, संख्यात भाग हीन ३, संख्यान गुण हीन ४, अख्यात गुण हीन ५ अने अनंत गुण होन ६. ते औदारिक शरीरथी सूक्ष्म पुद्गलो वडे वैक्रिय शरीर बंधायेलं होय छे, तेनाथी सूक्ष्म पुद्गलो वडे आहारक शरीर बंधायुं छे. तेना सूक्ष्म पुद्गलो वडे तैजस अने तेजसथी सूक्ष्म पुद्गलो वडे कामण शरीर बंधायेलुं छे. (३). ___ ए पांचे शरीरना प्रदेशनी संख्या कहे है:उरालिए अनंता तत्तो दोसु असंखगुणियाओ। तत्तो दोसु अणंता पणससंखा सुए भणिया ॥४॥ ___ अर्थ-औदारिक शरीरमा अनंता प्रदेशो छे. तेनाथी वीजा बे शरीरमा असंख्यात गुणा छे. एटले के औद रिक शरीरमा प्रदेशो सर्वथी योडा छे, तेनाथी वैक्रिय शरीरमा असंख्यात गुण अधिक छे. अने तेनाथी आहारक शरीरमां असंख्यान गुण अधिक छे. तेनाथी (ते आहारक शरीरथी) छेल्ला बे शरीरमां अनंन गुणा प्रदेशो छ, एटले के आहारक शरीरथी अनंतगुणा तैजस शरीरमां अने तैजसथी अनंत गुणा कार्मण शरीरमा प्रदेशा रहेला छे. ए प्रमाणे सिदान्तमां कबुं छे. (४)
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy