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________________ ranwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww श्री बावस्थिति प्रारम. __अर्थ--रुचा पर्वतनो पृथ्वीनी. सपाटी पर दश हजार ने बावीस योजननो विस्तार छे. १, मध्य भागमा सात हजार ने वीश योजननो विस्तार के २, तथा शिखरपर चार हजार ने चोवीश योजननो विस्तार के ३, मायी करीने प्रथमना वे पर्वतोना विस्तारमा जेटळा सो छे तेने स्थाने अहीं तेटला इजार के, एष जाणवू. ५७ हवे पूर्व कहेलावे पर्वतो करतां मा रुपा पर्वतना शिखर पर जे विशेष के वे कहे :-- रुअगसिहरे परदिसि बिअसहसेगेगचाउथिई । विदिसि चउड़ अ चत्ता दिसिकुमरी कूड सहसंका॥५८॥ ___ अर्थ-वलयाकारवाला रुचक पर्वतना चार हजार ने चोवीश योजनना विस्तारवाळा शिखरभागना चार विभाग करवा. तेमां दरेक विभाग एक हजार ने छ योजननो याय छे. तेमां प्रथम भागने मूकीने वीजा भागमा पूर्णदिक चारे दिशामां सहस्रकर नामना एक एक (बधा मळीने चार) कूट छ, तथा ते रुचक पर्वतना शिखरना एक हजार ने छ योजनना विस्तारवाळा चोथा भागमा ( दरेक दिशाए ) आठ आठ कूटो छ. ( वधा मळीने घ. जोश छे.) पण ते दिक्कुमारी मोनां स्थानो छे, एम जाणवू. नहि तो तेनी मध्ये रहेला सिद्धकूट सहित दरेक दिशामां ना नव कूटो थाय छे, एम वृद्धो (बहुश्रुतो) कहे छे. ते सिद्धकूट उपर गिनेश्वरनी प्रतिमाषी सुशोभित सिद्वायतन छ, तया तेज चोथा भागमा विदिशाभोमां चार कूटो छे. ते सर्वे (३६) सहस्र कूट नामबागा के. एटले-ते मूळमां (तटीयां ) हजार योजनना विस्तारवाळा के, मध्यमां सावसो योजन विस्तारवाळा छ, शिख. पर पांचसे। योगन विस्तारवाग के अने एक हजार योजनांचा
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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