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________________ श्री कायस्थिति प्रकरण. (३९) होय छे. ४. तेनी आगळ इंद्रध्वज होय छे. ५. तेनी आगळ जळथी भरेली पुष्करिणी वापी होय छे. ६. आ छ प्रकारो जिन भवनने विषे तथा पांच सभाओने विषे प्रत्येक प्रत्येक द्वारे होय छे. जिनभवन तथा सभा विगेरे नवेनुं प्रमाण तथा मुखमंडप विगेरेनुं प्रमाण राजपनीय उपांग आदि सूत्रोथी जाणी लेवु. २९. ___ हवे मूळ प्रासादावतंसक क्या छ ? ते कहे छे:-- ओआरियलयणंमि अ पहुणो पणसीइ हुँति पासाया। ति सय इगचत्त कत्थइ कत्थवि पणसहि तेर सयं ॥३०॥ अर्थ-सौधर्म विमानमा चोतरफ माकार छे, ते त्रणसो योजन उचो छे. मूळमां सो योजन पहोलो छे, मध्यमां पचास योजन पहोळो छे, अने उपरना भागमा पचीच योजन पहोळो छे. भवनपति निकायना भवनोने विषे रहेलो प्राकार उचाइ अने पहोळाइमां सौधर्म विमानना साकार करतां अर्थ प्रमाणवाळो छे. ते प्रकारनी मध्ये (वचमां) सर्वत्र उपकारिकालयन एटले पीठिकानो होय छे. ते सर्व पीठिकाओनी उपर विमानना स्वामीना पंचाशी प्रासादी होय छे, कोइ विमानमां ते पीठिकाओनो उपर त्रणसोने एकता. ळीश प्रासादो होय छे, अने कोइ विमानमां ते पीठिकाओ उपर एक हजार घणसोने पांसठ प्रासादो होय छे. एम त्रण प्रकार (भेद) छे ३०. ते प्रासादों शी रीते रहेला छे ? ते कह :-- मुहपासाओ चउदिसि चउहिं ते सोलसेहिं सोला वि। चउसहीए सा वि अ छप्पन्नेहिं दुसएहिं ॥ ३१ ॥ अर्थ-मुख्य प्रासादनी चार दिशामां चार मासादो रहेला छे. ते पहेली पंक्ति. मूळ प्रासाद भेगो गणतां पांच प्रासाद यया. चार वाजुना चार प्रासादोनी चारे दिशामा एक एक मासाद
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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