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________________ ( ३६ ) मूल तथा भाषांतर. ' अर्थ - इपुकार, मानुषोत्तर, कुंडल अने रुचक ए चार पर्वत पर प्रत्येके चार चार चैत्यो छे, तथा नंदीश्वर द्वीपमां वीस चैत्यो छे. हवे आ चैत्योना उच्च विगेरेनुं प्रमाण कहे छे. नंदी. वरना वीश अने कुंडल तथा रुचकना आठ मळी अठावीश चैत्यो पूर्व पश्चिम सो योजन लांबां छे, दक्षिण उत्तर पचास योजन पहोळां है, तथा बतेर योजन उंचां छे. ते सर्वे चार चार द्वारवाळां . २५. हवे तेथी अर्धा प्रमाणवाळां कहे छे: अट्ठाराहिय दुसई पत्रद्ध छत्तीसं दीह पिहुलुचा । माणुस इसुगय दंतय वरुखारवा सहर में रूसुं ॥ २६ ॥ C अर्थ - मानुषोत्तरनां चार, इपुकारनां चार, गजदंतनां वीश, वक्षस्कारai अंशी, वर्षधरनां त्रीश अने चूलिका सिवाय पांच मेरु पर्वत उपरना अशी - ए सर्व मळीने वसाने अढार चैत्यो पंचास योजन लांब, पचीश योजन पहोळां अने छत्रीश योजन उंचां छे. २६. पण सअिहिअ सयदुग संपुष्णको समद्ध देणं । दीहे पि उच्चते कुरुदुमवेअडचूला ॥ २७ ॥ अर्थ - दश कुरुक्षेत्रमा रहेला जंबू आदि द्रस वृक्षोनां नेतुं चैत्यो, पांच महाविदेहनी १६० विजय, ५ भरत अने ५ रावत कुल १७० क्षेत्रमा रहेला १७० दीर्घ वैताढ्यो उपरना एकसे ने सीतेर चैत्य, तथा पांच मेरुनी चूलिकानां पांच चैत्यो, ए सर्व १ इषुकार चारनी उपर थइने चार चैत्य समजवा बीजा aणे पर्वतो फरता तुलाकारे छे ते दरेकनी उपर चार दिशाए एक एक होवाथी चार चार समजवा. अन्यत्र (पर) चैत्यो कहेला छे. आ मतांतर जणाय छे.
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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