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________________ मूल तथा भाषांतर. । कुशील निग्गंथ-निग्रंथ तगुणा पुलय-पुलाक कसाला-कषाय. जत्तरं-यथोत्तर, एक नहाया-स्नातक कुशील एकथी बउसा-बकुश थोवा-थोडा ते-तेओ पडिसेवगा-प्रतिसेवा | संखिज्जगुणा-संख्या | विणिदिड्डा-कह्या छे अर्थ:-निग्रंथ' पुलाक, स्नातक, वकुश, प्रतिसेवा कुशील अने कषाय कुशील थोडा अने यथोत्तर संख्यातगुणा कह्या छे. १०६ विवेचनः-- हवे ३६ मुं अल्पवहुत्वद्वार कहे छ?--निग्रंथ सोथी थोडा छे. उत्कृष्टपणे पण एकसो वासठ होवाथी तेथी पुलाक संख्यात गुणा कारणके सहस्त्र पृथकत्व होय. तेथी स्नातक संख्यात गुणा कोटि पृथक्त्व होवाथी तेथी बकुश संख्यातगुणा शतपृथक्त्व कोटि होवाथी तेथी प्रतिसेवा कुशील संख्यात गुणा (अ. पूर्वे१०१. मी गाथामा प्रतिसेवा कुशील तथा बकुशनी संख्या सरखी कही छे.) तेथी कषायकुशील संख्यातगुणा तेनी संख्या सहस्त्रकोटि पृथकत्वनी होवाथी. १०६. भगवइ पणवीस सययस्स छठ उधे सगस्स संगहणी एसाउ नियंठाणं रइया भावत्थ सरणत्थं ॥ १०७ ॥ भगवई-भगवती ! छठ-छट्ठा. नियंठाणं-निग्रंथोनी सूत्रना उदेसगस्स-उदेशानी | रहया-रची पणवीस-पचीसमा संगहणी-संग्रहणी भाषत्थ-भावार्थ सययस्स-शतकना । एसा-आ ! सरणत्य-स्मरणनेअथे अर्थः-भगवती सूत्रना पचीसमा भतकना छठा उदेशानी संग्रहणी (द्वारोनो सम्ह ) निग्रंथोना भावार्थनें स्मरण करवाने माटे रची. १०७. 00000000000 पंचनिग्रन्थी समाप्त 00000000000
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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