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________________ मूल तथा भाषांतर (२७) एटले पुलाकपणाने पामता जघन्यथी एक समये एक होय अने उत्कृष्ट पणे शत पृथक्त्व होय. तथा प्रतिपन्न-पुलाकपणामां वर्तता जघन्यथी एकथी मांडीने उत्कृष्टपणे सहस्र पृथक्त्व होय. १०० सेवि वउसा पवज्जतगाय इकाइ जाव सयपुहत्तं । पडिवन्नगा जहन्नगइयरे कोडीसयपहुत्तं ॥ १०१॥ पवजंतगा-प्रतिप्रद्यः | पडिवनगा-प्रतिपन्न । इयरे-इतर .. मान | पामेला कोहीसह पुहुतं-शत जाव-सुधी । जहन्नग-जघन्ययो । पृथक्त्व कोटी ____ अर्थ:-प्रतिसेवा कुशोलपणाने तथा बकुशपणाने पामता एकादियो मांडी यावत् शत पृथक्त्व होय. अने प्रतिपन्न ते पणाने पाभेला जघन्य तथा उत्कृष्टथी शत पृथक्त्व कोटि होय.१०१ सकसाया इकाइ सहस्सपुहुत्तं सिया पवज्जंता।.. कोडी सहस्स पुहुत उक्कोसजहन्नगपवन्ना ॥ १०२॥ सकसाया-कषाय कु- सहस्तपुहुतं-सहस्र | पवज्जंता-प्रतिपयमान शील . पृथक्त्व पवन्ना-प्रतिपन्न इक्काइ-एकथी मांडी | सिया-होय __. अर्थः कषाय कुशील प्रतिपयमान एकथी मांडी सहस्त्र पृथक्व होय. तथा पूर्व प्रतिपन्न उत्कृष्ट अने जघन्यपणे हजार कोटि पृथक्त्व होय. १०२ पडिवज्जति नियंठा इकाई जा सयं तु बासह । अठसयं खवगाणं उवसमगाणं तु चज्वन्ना ॥ १०३ ॥ जा-यापन सुधी । अठ्ठसयं-एकमो आठ उघसमगाणं-उपशामक खवगाणं-क्षपक चउपन्ना-चोपन बासठं-बासठ । अर्थ:-निग्रन्थ एकथी मांडीने १२ प्रतिपद्यमान होय.क्षपक १०८ अने उपशामक ५४ होय. १०३ सय-सो
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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