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मूल तथा भाषांतर.
( १६५ )
विवेचनः - हवे श्रुतज्ञान केटलं होय ते कहे छे:- पहेला पुलाक निर्ग्रन्थने जघन्यथी (ओछामा ओछु) भुत होय तो नत्रमा पूर्वना आचार नामे श्रीजा वस्तु सुधीनुं होय. पूर्वान्तर्गत अधिकार विशेषने बरतु कहे छे. अने उत्कृष्ट ( वधारेमा वधारे) संपूर्ण नव पूर्वनुं होय. ४३
बउसकुसील नियं ठाणं, पवयणमायरो जहन्नसुयं । बउपडि सेवगाणं, पुव्वाइ दसेव उक्कोसं ॥ ४४ ॥
नियंठाणं-निर्ग्रन्थने
पवय-प्रवचन
ज्हन्न सुयं - जघन्यश्रुत
पडि सेवगाणं - प्रतिसे'वना कुशीलने
आयरो- आदर
अर्थः- बकुरा अने कुशील निग्रंथने जगन्य श्रुत आठ प्रवचन मातानुं ( पांच समिति अने त्रण गुप्तिनुं ) अने बकुश अने प्रतिसेवा कुशीलने उत्कृष्टयी दश पूर्वनुं श्रुत होय. ४४
निग्गंथ - निग्रन्थ
कसाइणं - कषायकुशीलने
पुष्वाह-पूर्वो दसेत्र- दश उक्कांसं -उत्कृष्ट
निग्गंथ कसाईणं चउदसओ सिणायओ सुयाईओ | दारं ८ ॥ आइ तियं तित्थमि, तित्थातित्थेसु अंततियं ॥ ४५ ॥ दारं९ ॥
तित्थातित्थेसु-तीर्थं
अने अतीर्थमां
सिणायओ - स्नातक सुयाइओ श्रुतातील आइतिय-आदि त्रिक तित्थम-तीर्थमां
चउदशओ-चौद
अंततियं-छेला त्रण.
अर्थः- निग्रन्थने तथा कषाय कुशीलने उत्कृष्टुं श्रज्ञान चौद पूर्वनुं होय. स्नातक श्रतातीत होय. प्रथमनां त्रण तीर्थमां अने छेल्लां त्रण तीर्थातीर्थमां. ४५
विवेचन :- हवे निग्रन्थना चोथा भेद निग्रन्य तथा कषाय कुशील निग्रन्थने उत्कृष्टथी चौद पूर्वनुं श्रुतज्ञान होय. स्नातक श्रुतातीत होय कारण के तेरमे चोदमे केवळज्ञान होय अने छद्मस्थिक ( एठले पहेलां चार ) ज्ञान ढले केवली थाय.
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