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________________ . .... . ........ ( २५४ ) श्री पंच निमंथो प्रकरण. चारित्र पुलाक, कारण के ज्ञान दर्शन चारित्र ते चारित्रमार्गमा सार छे. ते सारथी रहित ते पुलाक कहेवाय छे. ९ खलियाई दुसणेहिं, नाणं संकाइएहिं सम्मत्तं । मूलुत्तरगुण पडिसेवणाइ चरणं विराहेइ ॥ १० ॥ खलियाई-स्खलितादि सम्मत्त-सम्यक्त्व पडिसेवणार-प्रतिसेदूसणेहि-दूषणोवडे मुल-मुल गुण | वनादिक ना-बान उत्तरगुणेहि-उत्तर गु-चरण-वारित संकाइएहि-शंकादिवडे णोवडे विराहेह-विराधे __अर्थः-स्खलितादिक दूषणोवडे ज्ञान, शंकादिकवडे सम्यक्त्व अने मूलगुण तथा उत्तर गुणनी प्रतिसेवनावडे चारित्र विराधे. १० विवेचन:-हवे ज्ञान दर्शन तथा चारित्रने विष लगार लगार विराधना कइ कइ ते देखाढे छ:-स्खलितादिक दूषणोबडे ज्ञाननी विराधना अक्षरनी स्खलना ते स्खलित कहीए आदि शब्दे मिलितादिक लेवा. दर्शन एटले समकित जे जोनेश्वरना वचन उपर श्रद्धा ते समकित. तेमा शंकादि करवां ते सपकितनां दूषण पांच छे तेनां नाम-१ शंका. २ कांक्षा,३ वितिगिच्छा, ४ मिथ्यान्वीनी प्रशंसा, ५ मिथ्यात्वीनी संगत, मूलगुण अने उत्तर गुणनी प्रतिसेवना बडे चारित्र विराधे-माणतिपात विरमणादि पांच महावा तथा छठं रात्रिभोजन विरमण ए छ मूलगुण जाणवा. तथा पिंड विशुद्यादिक उत्तरगुण जाणवा. १० लिंगपुलाओ अन्नं, निकारणओ करेइ जो लिंग। मणला अकप्पियाणं निसेवओ होइ अह सुहुमो ॥११॥ लिंगपुलाओ-लिंग करेइ-करे | अकप्पियाणं अकल्पिपुलाक तनो अन्न-अन्य-बीजा निसेवओ-सेषनार निकारणओ-कारण- लिंग-लिंग षेष होइ-छे খিনা | मणसा-मनखंडे | अहसुहुमो-यथा सूक्ष्म
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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