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समकित ...
मूल तया भाषांतर. (१३ ) साइगसंमत-मायिक | बीणे-क्षीणमीहे. पणगं-पांच
| बागचरण-क्षायिक | खाइगमेा-क्षायिक पुण-वळी
चारित्र . . भेद तुरिगाह-चोथा आदि| जिणकहियं-जिनेश्व- एए-५ गुणठगे-आठगुणठाणे रे कहेलु
सोनि-सयोगि सुए-सूत्रमां . दाणाइलद्धि-दारि | परमे-छल्ले भणिय-कधुं छे । लब्धि
मुगठाणे-गुणस्थानके ___ अर्थ-क्षायिक समकित चोथायी आठ गुणगगा सुधी सूत्रमा कर्तुं छे. क्षीणमोहे क्षायिक समकित अने क्षायिक चारित्र. जिनेवरे कयुं छे. दानादि पांच लन्धिो केवल युगल, समकित तथा चारित्र ए क्षायिकना भेद सयोगी अने छेल्ले गुणठाणे होय. २४-२५.
विवेचन-चोथाथी आठ गुणाणा सुत्री एटले अगिधारमा गुणठाणा सुधी क्षायिक भावनो एक क्षायिक सम्यक्त्व ए भावहोय छे. बीजो एके होय नहि. तथा क्षीणमोह गुणठाणेक्षायिक समकित अने क्षायिक चारित्र ए बे भाव होय छे. ए प्रमागे तीर्थकरे कहेलं छे. तेरमा सयोगी तथा चौदमा अयोगी गुणठाणे दानादि पांच लब्धि, केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिक समकित अने क्षायिक चारित्र ए नवे क्षायिक भाव होय छे. ए प्रमाणे गणगणे क्षायिक भाव कहा-२४-२५ ___ हवे गुणठाणे पारिणामिक भावना भेद कहे :जीवत्तमभव्वतं, भव्वत्तं आइमेअ गुणठाणे । सासणा जा खीणतं, अभव्ववजा य दो भेया ॥२६॥ चरमे दुअगुणठाणे, भव्यतं वजिऊण जीवत्तं । एए पंचवि भावा, परुविआ सव्व गुणठाणे ॥ २७ ॥ 30