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________________ ( १९८) wwwmamim.....................................mararrammmmmmmmmmarriom भी भाव प्रकरण. विवेचन-त्रीजा मिश्र गुणठाणे मिश्र समकित, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अने अवधि दर्शन ए त्रण दर्शन, दानादि पांच लब्धि ओ अने ज्ञानत्रिक ए बार क्षयोपशम भावे होय, अहींआं मान अज्ञानमा कोइवार ज्ञाननी अने कोइवार अज्ञाननी बाहुल्यता होय अथवा बनेनी समानता पण होय. अहीं ज्ञानत्रिक कर्तुं ते ज्ञाननीपाहुल्यतानी विवक्षाथी जाणवू. तथा अहीं अवधिदर्शन कयुं ते सिद्धान्तना मतनी अपेक्षाए जाणवू. __चोया अविरति गुणठाणे मिथे कहा तेज बार क्षयोपशम भावे होय. फक्त फेर एटलो के मिश्र समकितने बदले क्षायोपशम समकित कहेवू. १४. सम्मुत्ता ते बारस, विरह खेवण तेर पंचमए । छठे तह सत्तमए, चउदस मणनाण खेवि कए ॥ १५ ॥ सम्मुत्ता-अविरति • तेर-तेर सत्तमए-सातमे गु. जठाणे कहेला पंचमप-पांचमे गुण- ठाण ते-ते चउदस-चौद विरखेवेण-विरति । छठे-छठे गुणठाणे मणनाणखेविकप-मन: नाखवायी त ह-तेमज । पर्यवनो क्षेप करवायी __ अर्थ-सम्यक्त्व गुणगणे कहेला ते बारमा विरति नाखवायी पांचमे गुणगणे तेर छठे तेमज सातमे मनः पर्यवनो क्षेप करवाथी चौद विवेचन-चोथे गुणठाणे कहेला बारमा देशविरती उमेरवाथी पांचमे गुणठाणे तेर भाव होय छे. छठे तथा सावमे गुणठाणे ते तेरमा मनः पर्यायज्ञान उमेरवाथी चौद क्षायोपत्रमिक भाव होय छे १५. अहम नवमदसमे, विणु सम्मत्तेण होइ तेरसगं । उवसंत खीणमोहे चरित्तरहिआ य बार भवे ॥ १६ ॥ अहम-आठमे । सम्मलेण-सम्यक्त्व | चरितरहिभा-चारिमधमे-जयमे | तेरसगं-तेर इसमे-दशमे उपसंत-उपशांत विणु-बिना बीपमोहे-क्षीणमोहे भवे-चाय ठाण अविना
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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