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________________ (२२६) श्री भाव प्रकरण. अर्थ:-प्रययना त्रण गुणगणे मीश्र, औदयिक अने पारिणामिक ए त्रण भाव होय छे. आगळना आठ गुणगणे उपशम विना चार, क्षायिक औदयिक अने पारिणामिक एत्रण भाव छेल्ला बे गुणठाणे होय छे. एमना उत्तरभेद मिथ्यात्वादि गुणगणे कहुं छु. ११-१२. . विवेचन:--मिथ्यात्व गुणस्थान, सास्वादन गुणस्थान अने मिश्र गुणस्थान एत्रण गुणठाणे मीश्र औदयिक अने पारिणामिक एत्रण भाव होय छे. तेमा क्षयोपशम भावे इन्द्रियादि, औदयिक भाषे गत्यादि अने पारिणामिक भावे जीवत्वादि. तयात्रीजां गुणगणाथी आगळनां आठ गुणठाणा सुधी एटले अविरति, देशविरति, प्रमत्त, अप्रमत्त, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्म संपराय अने उपशांतमोहे पांच पांच भाव होय छे. तेमां उपशमभावे औपशमिक समकीत अविरती गुणठाणाथी अगिआरमा गुणठाणा सुधी होय छे. क्षायिफ समकीत पण क्षायिक भावे तेटला गुणठाणे होय छे. त्रीजा क्षयोपशम भावे क्षायोपशमिकी इंद्रियादि तथा क्षयोपशम समकीत चोथा गुणठाणाथी सातमा गुणठाणा मुधी होय छे. आगल आउमाथी अगिआरमा सुधीना चार गुणठाणे क्षायोपशमिकी इंद्रियादि होय छे पण क्षायोपशम समकीत न होय. कारणके समकीत मोहनीयना उदयथी ते समकीत होय तेनो उदय सातमा गुणठाणा सुधीज होय. चोथा औदयिक भावे गत्यादि अने पांचमा पारिणामिक भावे जीववादि. तथा बारमा क्षीणमोह गुणस्थाने उपशमभाव विना चार भाव होय छे. तेमां क्षयोपशमभावे इंद्रियादि, औदयिक भावे गत्यादि पारिणामिक भावे जीवत्वादि अने क्षायिक भावे समकीत अने चारित्र. उपशमभाव मोहनीय कर्मनो होय छे ते मोहनीयनो बारमे गुणठाणे क्षय होवायी ते भाव बारमे नयी. तेरमा सयोगी तथा चौदमा अयोगी गुणठाणे, क्षायिक मावे केवलशानादि,
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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