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________________ मूळे तथा भाषांतर. (२२३) विवेचनः-१धर्मास्तिकाय १ अधर्मास्तिकाय. ३ आकाशास्तिकाय अने काल ए चार द्वारोने विषे एक पारिणामिक भाव होय छे:-कारणके धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय अने आकाशास्ति. काय अनादि कालथी आरंभी जीव अने पुद्गलोने अनुक्रमे गतिमां तथा स्थितिमां उपस्तंभ आपवाना अने अवकाश आपवाना परिणाममा परिणत छे. तथा काल पण आवलिकादि परिणाममा परिणत होवाथी अनादि परिणामिक भावमा वर्तवापणुं छे. पांचमा स्कन्धद्वारने विषे पुद्गल स्कंधने विषे पारिणामिक अने औदयिक एबे भावो छे. तेमां ध्यणुकादि (बेपरमाणुना बनेला विगेरे (स्कं. एच भावो . तमा ध्यणकादि धोमां काल आश्री सादिपणुं होवाथी सादि पारिगामिक भाव जाणवो. अने मेरु विगेरे जे स्कन्धो छ तेओ अनादिकालथी ते रुपे परिणमेला होवाथी अनादि पारिणामिक भाव जाणवो. तथा जे अनन्त परमाणुना स्कन्धो छ जेने जीव कर्मरूपे परिणमावे छे. तेनो कर्मरूपे उदय होवाथी तेवा स्कन्धोमां औदयिक भाव पण छे ते आवी रीते-शरीरादि नाम कर्मना उदयथी थएल औदारिकादिःस्कन्योनो औदारिक शरीरपणे उदय ते औदयिक भाव जाणवो. जे छुटा परमाणुओ छे तेमां जीवना ग्रहणनो अभाव होवाथी औदयिक भाव नथी तेमां फक्त पारिणामिक भावन होय छे. ___ हवे छटुं कर्मद्वार आवी रीतेः-मोहनीय कर्मने विषे पांचे भाव होय छे. तेमा प्रथम औपशमिक भाव आवी रीते मोहनीयनी भस्मथी अवराएल अग्निनी पेठे अनुदय अवस्था ते औपशमिक भाव-अहीं सर्वोपशम लेवो पण देशोपशम नहि. देशोपशमनो सर्व कर्मोमां संभव होवाथी. जे मोहनीय उदयमा आव्या तेना क्षयथी अने अनु. दीर्णना उपशमथी क्षयोपशम. त्रीजो जे हे मोहनीयनो आत्यन्तिक (फरीथी बंधन याय तेवो) नाश ते क्षायिक. मोहनीय कर्मनो दर वे औदयिक भाव. ते जाणीवो छे. सर्वे संसारी जीवोने आहे
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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