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________________ मूल तया भाषांतर. (१९) चतुः संयोगी भांगा ५. . .. १ औप० क्षायि० । क्षायोप० पारि० | ४ औप० क्षायोप० औद. पारि० क्षायोप० औदः | ३ औप० क्षायि० । ५ क्षायिक क्षायोप० २ औप० क्षायि० । औद० पारि० । औद० पारि० पंचसंयोगो भांगो १ १ औप० क्षायिक क्षायोप० औद. पारि० एवी रीते ए २६ सान्निपातिक भाव जाणवा. एकमां सन्नि. पात न होय. संयोगनो अभाव होवायी. ए छब्बीसमांथी द्विक संयोगहिनो सातमो भांगो क्षायि० अने पारि० ए सिद्धने होय. १. त्रिक संयोग महेिलो नवमो भांगो क्षायिक, क्षायोपशमिक अने पा. रि० ए केवलीने होय. २. अने दशमो भांगो क्षायोपशम, औदयिक अने पारिणामिक ए भांगो चारे गतिमां होय ३. चतुःसंयोगी मध्ये नो चोथो औप० क्षायो० औद० पारि० ४. तथा पांचमो क्षायिक क्षायोप० औद० पारि० ५ ए बे चारे गतिमा पामीए तथा पंचसंयोगी एक भांगो ६ उपशमश्रेणीमां मनुष्यने पामीए. ए प्रमाणे छ सानिपातिक जीवोमां संभवे वाकीना वीस भांगा जीवोने संभवे नहि. तथा अजीवने पारिणामिक अने औदयिक भाव अजीवने संभवे पण जीवा भावो अजीवने न होय हवे मूल भेदना उत्तरभेद कहे छ:केवलनाणं दंसण खइ सम्मं च चरणदाणाई। नव खइआ लडीओ उवसमिए सम्म चरणं च ॥५॥ केवलनाणं-केवलज्ञान | चरण-चारित्र | लमिओ-लब्धिओ दसण-केवलदर्शन दाणाइ-दानादि उपसमिए औपशमिक बाइ-क्षायिक | नव-नव सम्म-समकित सम्म-सम्यवस्व समा-शायिक चरण-चारित्र
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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