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________________ ( १८६ मूल तथा मापांसर. पांच ढीशीनी स्पर्शना होय छे. तेमांथी जघन्य पद त्रण दिशिनी स्पर्शनावाळा गोळामां होय छे. तेनी बाकीनी ऋण दिशाओनी म्पर्शना अलोकयी आच्छादित यएली छे. अलोकमां जीवनी गति नहि होवाथी न्यां जीवा होता नयी. आवा ओछी स्पर्शनावाला खंड गोळा कहवाय छे. माटे जघन्यपद त्रण दिशिनी स्पर्शनावाळा खंड गोळामां होय छे. जे गोळामा छ दिशिमां नवा नवा गोळाने उत्पन्न करनार निगांढराशीनी म्पर्शना होय छे ते उत्कृष्टपद कहेवाय छे. या उत्कृष्टपद संपूर्ण गोळामांज होय छे पण खंड गोळामां होतुं नथी. संपूर्ण गोळा तो लोक मध्येज होय छे पण लोकने छेडे होता नथी.३ उक्कोसभसंखगुणं. जहन्नयामो पयं हवइ किंतु । नणु तिहिसिफुसणाओ, छदिसिफुसणा भवे दुगुणा ॥४॥ उक्कोस-उत्कृष्ट पद हवा-थाय से फुसणाओ-स्पर्शनावी असंवगुणं असंख्यात. किंतु-शु, केम गणुं नाहनयाओ-जघन्यथी ना अमां) मन छ । पर्य-पद तिहिसि-प्रणदिशिनो दुगुणा-बमणा ___ अर्थ-वण दिशिनी स्पर्शनानी छ दिशिनी स्पर्शना बमणी होवायी जघन्य पदयी उत्कृष्टपद असंख्यातगुणुं केवी रीते थाय १४ विवेचन-खंड गोलामां जयन्यपद कडं ते खंड गोलानी स्पर्शना त्रण दिशिनी छे अने संपूर्ण गोलामा उत्कृष्टपद कयं तेनी स्पर्शना छ दिशिनी छे. माटे बमणा याय पण असंख्यातगुणा केवी रीते थाय. जघन्यपदे एक आकाश प्रदेशमा रहेल जीव प्रदेश राशीनी अपेक्षाए सर्व जीवोनी संख्या असंख्यातगुणी कही. तेथी उत्कृष्टपदे जीव प्रदेश विशेषाधिक कला माटे ते पण-(उत्कृष्ट पद. पाळा) अवन्यपदवी असंख्याएका पाय ते केवी रीते घटे १४ नणु-निषित (फुसणा स्पर्शना
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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