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________________ मूल तथा भाषांतर. ७. प्रथमा विषमोत्तर सिद्ध दंडिकानी स्थापना:मोले गएल ३ ८१६२५१९१७२९ १४५० ८० ५७४८१४९२९ ए प्रमाणे असंख्यात सधी, सर्वार्थसिद्ध गपल५ १९२० ९१५३१२८ २६ ७३ ४९.६५२७१... ___ए प्रमाणे असंख्यात सुधी. अंतिल्ल. अंकआई, ठविडं बीआइ खेवगा तह य । एवमसंखा नेआ. जा अजिअपिआ समुप्पनो ।। १२॥ तिल्ल छेल्लो बीआरबेनी आदिथी। नेमा-जाणवा क-प्रांक खेषगा-क्षेपक अनि अपिआ-अमित. आई-मादिर्मा एवं ए प्रगणे नाथमा पिता ठविधु-स्थापीने । असंखा-असंख्याता | समुप्पनो-उत्पन्न घया अथ-उल्ला आंकने आदिमा स्यापीने बे आदि तेमज खेपपपा ए प्रमाणे अजितनाथना रिता उत्पन्न थया त्या सुधी असं. ख्याता जाणवा. १२ - विवेचनः-एवी रीते दयादि विषमोत्तरा असंख्याती सिद्ध दंडिकाओ अजीत निनना पिता जितशत्रु उत्पन्न यया त्यां सुधी कोती. पण एटल विशेष के पाछल (पूर्व) कहेली दंडिकामां मोलन जे ठेल्लु अंक स्थान छे तेज पर्छ नी दरिकामां सर्वार्थप्रथम स्थान ते दंडिकामां सथिन जे छेल्लु अंकस्थान तेज त्यार पछीनी दंडिकामां मोक्ष- प्रथम अंकस्थान. एवी रोते असंख्याती दंडिकामां प्रथमनां अंकरथानो अनुक्रमे मोक्षनां अने सर्वाथ सिद्धना जाणवां. एज लेशमात्र कहेवाय छे:-हवे प्रथम (प्रथमा, विषमोत्तर सिद्धदंडिकामां) दंडिकामा छेल्लु अंकम्थान २९ छे. तेथी २९वार २९ अर्व अने अधो अनुक्रमे स्थापा. प्रथम स्थानमा प्रक्षेप नथी माटे तेटला सर्वा]. त्यार पछी द्वितीयादि अंकस्थानोमां दुग्र
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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