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________________ अचुअ-नहि चवेला असंखं असंख्यात अंस - भाग उदही- सागरोपम मूल तथा भाषांतर. अनंत अनंतकालथी अहिवास-वर्षाधिक संतर - अंतरसहित अनंतर - निरंतर अर्थ- समकितथी नहि चवेलाने सागरोपमनो असंख्यातमो भाग, अनंतकालथी पडेलाने वर्षाधिक. बाकीनाने संख्यात वर्षनुं सांतर, निरंतर एक अने अनेकने संख्याता हजार वर्षनुं अंतर. २८ विवेचन ११ उत्कर्षद्वार - समकितथी नहि पडेळाने सागरोपमना असंख्यातमा भागनुं अन्तर, अनंतकालथी पडेलाने वर्षाधिक. असं. ख्यात वर्षथी चवेलाने तथा संख्यातवर्षथी चलाने संख्याता वर्षं अन्तर. १२ अन्तरद्वार - संख्याता हजार वर्षनुं अन्तर १३ निरंतरद्वारे इअ - ए गुरु- उत्कृष्ट अन्तरं- आंतरु. उत्तं-कहां समय-समय इग- एक अणेग-अनेक संखिज्जा- संख्याता भाव-भाव बहू - क्षायिक (१५१) " 19 " १४ गणनाद्वारे - एक अने अनेकमां संख्याता हजार वर्षनं अंतर. इअ गुरु अंतरमुत्तं लहु समओ ६ भावु सव्वहिं खइओ ७ च दस वीसा वीस पहुत्त अठस्सयं कमसेो ॥ २९ ॥ सम धोव समा संखागुणिआ इय भणि अणंतरा सिद्धा । अह उ परंपर सिद्धा, अप्पबहुं मुं तु भणिअत्था ॥ ३० ॥ कमसो- अनुक्रमे सम-सरखा थोष-थोडा संखा संख्यात गुणिआ गुणा भणिअ-का अह-हवे उ-वळी अप्पबहु- अल्पबहुस्व मुत्तु - मूकीने भणित्था का प्र माणे कवा
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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