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________________ _ मूल तथा भाषांतर (१४) - १ यी ३२ निरंतरपणे आठ समय सुधी. सीझे. एटले प्रथम समये जघन्यथी एक बे के प्रणथी यावत् उत्कृष्ट ३२ सुधी सीझे. बीजे समये पण जघन्य एक बे के त्रणयी यावत् उत्कृष्ट ३२ सुधी सीझे. एमत्रीजे चोथे यावत् आठमा समय सुधी कहेवु पछी अवश्य अंतर पडे. ए प्रमाणे ३३ थी ४८ सात समय सुधी कहेवा एम सघळे कहे. १४-१५-गणनाद्वार अने अल्प बहुत्वद्वार पूर्वे कहेला सत्पद प्ररूपणा द्वारनी पेठे जाणवू, एवी रीते क्षेत्रादि १५ द्वारे वीजें द्रव्य प्रमाण द्वार कह्यु: १७. हवे एक गाथा वडे क्षेत्र अने स्पर्शना द्वार कहे छेलोअग्गठिआ सिद्धा इह वुदि चइय पडिहय अलोए ३ । फुसइ अणंते सिध्धे, सव्वपएसेहि सो सिद्धो ४ ॥१८॥ लोअग्ग-लोकाग्र, सि. | चाय-त्यजीने अणंते-अमता अशिला परिहय-प्रतिहत, रो-मि-सिद्रोने ठिआ-रहेला काया पह-अहीं अलोए-अलोकमां पपसे हि-प्रदेशोबो बुदि-शरीर फुस-स्पर्शसो - अर्थ- अहीं शरीरने तजीने अलोकथी रोकाया छतां.को. कना अग्रभागने विषे रहेला छे, ते सिद्ध भगवान पोताना सर्व आत्म प्रदेशो वडे अनंता सिद्धोने स्पर्श. १८. विवेचन-आ लोकने विषे शरीरनो सर्वथा क्षय करीने अष्ट कर्मयी मुकाया छतां जीव उंचे गमन करे छे. पछी लोकनो अग्रभाग जे सिद्धशिला ज्यांथी आगल अलोक आवे छे तेनायी रोकाया छनां त्यांज रहे हैं. अलोकमां धर्मास्तिकाय नहि होवाथी जीव गमन करी के नहि. ए प्रमाणे पंदरदारने विषे त्री द्वार माण. ३.
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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