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________________ मूल तथा भाषांतर. कर्प द्वार वधारतां नव द्वार वडे परंपरसिद्ध विचारवा. विवक्षित प्रथम समये जे सिद्ध थया तेनी अपेक्षाए तेना पूर्वना समये सिद्ध थयेला ते पर.ते पूर्व समये सिद्ध थनारथी तेनी पूर्वना समये सिद्ध ते. परंपर एम पाछळ पाछळ कहेवू. एवी रीते परंपराए. सिद्ध ते परपरसिद्ध. विवक्षित सिद्धत्व प्रथम समयथी पूर्व पूर्वे द्वितीयादि सम.. यथी अनन्ता अतीव अद्धामां (भूतकालमां) थइ गएला ते परंपर सिद्ध. तात्पर्य एके अनन्तर सिद्धमा अमुक एक समयनी अपेक्षाए विचारखु, अने परंपरसिद्धमा अमुक विवक्षित समयथी पूर्वे पूर्व अनंता भूतकाल सुधीमां थइ गएला सिद्धोनी अपेक्षाए विचार, ते परंपरसिद्धने विषे सन्निकर्ष साथे नव द्वार कहेशे. सत्रिकर्ष एटले संयोग सर्वगत अल्प बहुत्व विशेष: खित्तं काले गइ वेअ तित्थ लिंगे चरित्त वुद्धे य । ९ १० ११ . १२ १३ १४ १५ नाणोगाकस्से, अंतरमणुसमयगणण अप्पबह ॥ ४॥ खिचे-क्षेत्र | चरित्त-चारित्र ! अंसर-अंतर काले-काल बुद्ध-बुबू अणुसमय-अनुसमय, गह-गति : नाण-ज्ञान निरंतर वेअ-घेद तित्थ तीर्थ ओगाह-अयगाइना गण-गणणा लिंगे-लिंग | उक्कस्से-उत्कर्ष . | अप्पबहू-अरूपबहुत्व अर्थ--(पूर्व कहेला अनंतर तथा परंपरसिद्ध आ पंदर द्वारने वि विचारवा तेनां नाम कहे छे) १ क्षेत्र द्वार, २ काल द्वार, ३ गतिद्वार, ४ वेदद्वार, ५ नीर्थद्वार, ६ लिंगद्दार, ७ चारित्रद्वार, ८ बुद्धद्वार, ९ ज्ञानद्वार, १० अवगाहना द्वार, ११ उत्कर्पद्वार, १२ अंतरद्वार, १३ अणुसमयद्वार, १४ गणणाद्वार, १५ अल्पबहुम्वद्वारः १७
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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