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________________ ( १२६ ) मूल तथा अर्थ सहित. इणिपरे प्रभु स्तविओ, समकीत लेश विचारे। आगमअनुसारे, मुझ मतिने अनुहारे ॥ संवतकतुर स मुनि, चंद्रसंवत्सर जाणी (१७६३) । भादरवा मासे, सीतपंचमी गुणखाणी ॥ ५ ॥ अर्थ - एवी रीते विक्रमसंवत् १७६६ ना भादवा शुद ५ ने दिवसे सिद्धांतने अनुसारे मारी मतिपूर्वक समकीतना किंचित वर्णन सहित श्रीमहावीरस्वामीनी स्ववनारूप आ स्तवन रच्युं ॥५॥ कया गच्छाधिपतिना वखतमां अने कोणे रच्युं ते कहे छे:श्रीतपगच्छनायक, श्रीविजयरत्नसूरींद | सुरगुरु जस आगल कर जोड़े मतिमंद ॥ तस राजे पंडित, उत्तमसागर शिष्य कहे न्यायसागर, प्रमु पूरो संघजगीस। ६ अर्थ - प्रतिमंद एवो बृहस्पति पण जेना आगल हाथ जोडे हे, एवा श्रीतपच्छाधिराज विजयरत्नसूरीश्वर महाराजना वखतमां पंडित शिरोमणि श्री उत्तमसागरजीना शिष्य न्यायसागरजी आ वीरप्रभुनी स्तवन करताथका कहे ले के हे प्रभु ! श्रीसंघनी जगीम पटले मनोवांछा पूर्ण करो ? ॥ ६ ॥ || शुभं भवतु || कल्याणमस्तु ॥ श्रीरस्तुः ॥ ॥ समाप्तोऽयं ग्रंथो गुरुश्रीमच्चारित्र विजयमुप्रसादात् ॥ -- समाप्त.
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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