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________________ श्री समकीतविचारगर्मित-महावीर जिनस्तवन. (११७) उपशम मास्वादन कह्युजी, आभव वेलारे पंच ॥ वेदक एकवेला हुयेजी, तिमहिज क्षायक संचरे । जि० ॥ १५ ॥ वार असंख उत्कर्षथीजी,क्षयोपशमिक होय ॥ हवे तस गुणठाणा कहुंजी, सांभलजो सहु कोय रे। जि० ॥१६॥ अर्थ-आ भवचक्रमां उपशम अने सास्वादनसमकीन पांचवार माप्त थाय छ, वेदक अने क्षायिकसमकोत एकजवार प्राप्त थाय छे, अने वारंवार परिणामना उत्कर्षथी क्षायोपशमिकसमकीत असंख्यातीवार आवे , कहेल छ के-कोसं सामायण । उपसमिया हुंति पंचवाराओ ॥ वेयग खइगा इक्कसि । असंखवारा खोवममो ॥१॥ हवे आ पांचे सपकीनो कथा कया गुणाणामां होय, ते कहेवाय छे, ते सर्व कोइ सांभळतो? उपशम अडगुण ठाणमांजी, अविरत गुण पदरेख । क्षायिक गुणठाणे सवेजी, आदिम त्रण विणशेष रे। जि०१७ अविरति गुणठाणा धकीजी, जावत सत्तम ठाण । एक वेदक बीजं इहांजी, क्षायोपशमिक जाण रे । जि० ॥१८॥ सासायण सासायणेजी, भाखे अंग उवंग॥ न्याये शिवसुख ते लहेजी, जश तुज आण अभंग रे। जि० ॥१९॥ अर्थ-उपशमसमकीत अविरति एटले चोथा गुणठाणाथी मांडीने अग्यारमामुधी आठ गुणठाणमां होय छे, अने क्षायिकसमकीत पथमना त्रण गुणठाणा मूकीने शेप सबला गुणठाणमां होय छे. वेदक अने क्षायोपशमिकसमकीत ए बने चोथाथों मांडीने सातमासुधी चार गुणठाणामां होय छे. सास्वादनसमकीत वीजा सास्वादन गुणठाणेज होय छे, एम अंग बने उपांगमा कहेल छे, वली सम्य. क्त्वस्तव (समकीत पच्चीसी) मां पण कहां के के-बीयगुणे सासाणो। तुरियाइसु अठिगार चउ चउम्॥ उवसमग खइग वेयग । खाओ.
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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