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________________ श्री कायस्थिति प्रकरण. (७) कायस्थितिना काळनुं प्रमाण प्रत्येक प्रत्येक एटलुंज कहेवु (जाण)६ संखिज्जवाससहसे, बितिचउरिंदीसु ओहओ अतहा। पज्जत्तवायरेगिदिभूजलानिलपरित्तेसु॥७॥ मूलार्थ--ओपथी बेइंद्रिय, तेइंद्रिय अने चारद्रियने विभ हुँ संख्याता हजार वर्षा सुधी भम्यो, तथा पर्याप्त बादर एकेन्द्रि पृथ्वीकाय, अपकाय, वायुकाय अने प्रत्येक वनस्पतिकाय, तेमने विषे पण संख्याता हजार वर्षों सुधी हुं भम्यो. ७. टीकार्थ-ओपथी एटले पर्याप्त अने अपर्याप्त रुप विशेषण विना ज सामान्यपणे द्वींद्रिय, त्रींद्रिय अने चतुरिंद्रिय रुप विकलेन्द्रियोने विषे संख्याता हजार वर्षी सुधी भम्या. अहीं भावार्थ ए छे के-दीन्द्रियादिक जातिमां केटलाएक (थोडा) भव भ्रमणनो संभव होवथी प्रत्येक जातिमां संख्याता काळ्नीज स्थीती संभवे दावादक जातमा कलाकचाहाना छे. हवे पर्याक्षादिक विशेषणवाला बादर एकेन्द्रिय पृथ्वी आदिनी कास्थिति आ गाथामां तथा आगळनी गाथामां द्वीन्द्रियादिकनी कायस्थिति कहे छे:-पर्याप्त वादर नाम कर्मना उदयमां वर्तता एकेन्द्रियो जे पृथ्वी, जळ, वायु अने प्रत्येक वनस्पति तेमने विषे प्रत्येके प्रत्येके हुँ संख्याता हजार वर्षों मुधी भम्यो. अहीं भावार्थ एछे के-जेणे पर्याप्त पर्यायनो त्याग कर्यों नथी एवा पृथिव्यादिकमांना एकने विषे उत्पन्न थनारा बादर एकेन्द्रियने उत्कृष्ट आयुध्यवाला भवनी संकलना ( गणतरी) करवायी संख्याता हजार वर्षोंज थाय छे. ते आ प्रमाणे-पर्याप्त बादर पृथ्वीकायनी स्थिति उत्कृष्टथी बावीश हजार वर्षनी छे, अप्कायनी स्थिति सात हजार वर्षनी छे, वायुकायनी त्रण हजारनी छे तथा प्रत्येक वनस्पति कायनी स्थिति दश हजार वर्षनी छे. तेथी आ पृथिव्यादिकने विषे निरंतर केटलाक भवना आयुष्यना कामनी गणतरी करतां उत्कृष्टयी बाते आ पमाणे तरी) करवाया
SR No.023119
Book TitlePushpa Prakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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