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________________ (ण) शतवलाक्ष शतवलाक्ष शब्द सामासिक शब्द है। इसके आधार पर शतवलानि बहुबलानि अक्षीणि इन्द्रियाणि यस्य सः इससे पता चलता है कि इनके अंग काफी मजबूत थे तथा गठे हुए थे। निरुक्तमें ही शतवलाक्षको मौद्गल्य कहा गया है। मौद्गल्य शब्द तद्धितान्त है इससे पता चलता है कि ये मुद्गलके पुत्र थे। निरुक्तं मृत्यु शब्दके निर्वचन प्रसंगमें यास्कने इनके नामका स्मरण किया है मृत्यु:मृतं च्याघयतीति वा शतलाक्षोमौद्गल्य :९५ अर्थात् मृतको यह इस लोकसे प्रच्युत कर देती है या लोकान्तरमें चला देती है। इनका उल्लेख वृहद्देवता में भी हुआ है।९६ यास्क द्वारा उल्लिखित होने से स्पष्ट है कि ये यास्कके पूर्ववर्ती हैं। __रचनाएं :- इनकी रचना के संबंधमें निश्चित रूपसे कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि सम्प्रति इनकी कोई रचना उपलब्ध नहीं है। निरुक्तमें ही निरुक्तकार के रूप में स्मृत होने के चलते अनुमान होता है कि इनका भी निरुक्त नामक ग्रन्थ होगा। निर्वचन सिद्धान्त :- निरुक्तमें मात्र एक जगह ही इनके विचारका उल्लेख हुआ है इससे इनके निर्वचन सिद्धान्त स्पष्ट नहीं होते। -:सन्दर्भ संकेत: १. प्रत्यक्षानुमानोपमानशब्दा:प्रमाणानि-सि.मुक्ता. प्रत्यक्ष खण्ड २५१ का ., २. अथोतामिधानैः संयुज्य हविश्चोदयति। इन्द्राय वृत्रन इन्द्राय वृत्रतुरे इन्द्रायांहोमुचइतिनि. ७।३ (मै.सं. ३।१५।११). ३. भा.वि. पृ. ५२९, ४. नि.दु.वृ. १।४।२, ५. वृ.दे. ७६९, ६. बौ.श्री.सू. २२।१ ७. द्र. (काक शब्द) नि. ३।४, ८. द्र. कैटलाग् आफ संस्कृत मैन्यूस्क्रिप्ट्स-खण्ड-२ पृ.५१०, ९. नि. १।१, १०. नि. २११, ११. नि. २।२, १२.नि. ३।२, १३. ऋषिर्दर्शनात्। स्तोमान् ददर्शेत्यौपमन्यवः नि. २।३, १४. नि. ३।४, १५. नि. ६६, १६. नि. १०।१, १७. नि. ३।४, १८. नडादिभ्यो फक्-अष्टा. ४।१।९९, १९. नि. १।१, २०. तस्मै नूनमधिद्यवे वाचाविरूपनित्यया वृष्णे चोदस्व सुष्टितिम् ११ क्र. ८७५६.२१. नि. ११, २२. जायतेऽस्तिविपरीणमते वर्धतेऽपक्षीयते विनश्यतीति-नि: १११, २३. यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते येन जातानि जीवन्ति यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति-तै. उप.-२।१ जन्माद्यस्य यत:-ब्र.सू.१।१२,द्र.ब्र.सू.शा.भा.-१।१।२,२४.म.भाष्य-१।३।१,२५. ननिईद्धा उपसर्गा अर्थान्निराहुरिति शाकटायनःनि. १।१, २६. उच्चावचाः पदार्था ८८ : शुत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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