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________________ काण्ड कहलाते हैं । इन ग्रन्थों में भी कुछ निर्वचन प्राप्त हो जाते हैं। निरुक्त तो निर्वचन शास्त्र का मूल ग्रन्थ ही है । विविध प्रातिशाख्यों में भी यत्र तत्र निर्वचनकी उपलब्धि होती है। शौनक रचित वृहद्देवतामें कुछ शब्दोंको स्पष्ट करनेके लिए निरुक्ति दी गयी है। कौटिल्य अर्थशास्त्र में भी निर्वचन प्राप्त होते हैं । महामाष्य आदि ग्रन्थोंमें भी निर्वचन देखने को मिलते हैं । लौकिक संस्कृतके रामायण, महाभारत, पुराण तथा लौकिक संस्कृत काव्यों में भी यत्र तत्र निर्वचनके दर्शन होते हैं । एक ही शब्द विविध ग्रन्थोंमें व्याख्यात हैं। यहां कुछ शब्दोंके निर्वचनोंका परिशीलन करना अभीष्ट है जो विविध ग्रन्थोंमें आये हैं। शब्दों के निर्वचनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इसीसे स्पष्ट हो जायेगी। हम देखते हैं कुछ शब्द वैदिक कालसे लेकर आज तक अर्थ विवेचनमें प्रयुक्त हैं। बहुत सारे शब्द समानार्थी हैं लेकिन कुछ शब्दों के अर्थ भिन्न भी हो गये हैं । 2 तैत्तिरीय संहितामें रूद्र शब्दका निर्वचन प्राप्त होता है 'सोऽरोदीत् । यदरोदीत्तद्रुद्रस्य रूद्रत्वम्" यहां अरोदीत् क्रियाका सम्बन्ध रूद्रसे है। अरोदीत् क्रिया रूद् अश्रु विमोचने धातुसे निष्पन्न है। रूद्रमें रूद् धातुका योग है। यह प्रत्यक्ष वृत्याश्रित निर्वचन है । काठक संहितामें कहा गया है ‘यत्समरूदत्तद्रुद्रस्य रूद्रत्वम् " इसके अनुसार भी रूद्र शब्दमें रूद् धातु का योग है । शतपथ ब्राह्मणके अनुसार 'सोऽरोदीत्तस्य यान्यश्रूणि प्रास्कन्दंस्तान्यस्मिन्मन्यौ प्रत्यतिष्ठन्त्स एवं शतशीर्षा रूद्रः समभवत् ।" इसके अनुसार भी रूद्र शब्दमें रूद् धातुका ही योग स्पष्ट है। निरुक्तमें भी रूद्र शब्दका निर्वचन रूद् धातुसे माना गया है।' निरुक्तमें ही हारिद्रव का मत उल्लिखित है जिसके अनुसार भी रूद्र शब्दमें रूद् धातुका ही योग है। हारिद्रविक मैत्रायणी संहिता का शाखाभेद है । ' निरुक्तमें रूद्र शब्द वायुके लिए प्रयुक्त है। शत्रुओं को रुलान े के कारण ही रूद्र कहलाया । परिणाम स्वरूप रूद्र शब्द शिव के एक विशेष रूपका भी वाचक है । काठक संहिता में रूद्रके रोने के कारण को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि उस रूद्रने प्रजापति ब्रह्माको वाणसे वेध दिया तथा बादमें शोक करता हुआ रो पड़ा। यही उस रूद्रका रूद्रत्व है। इन निर्वचनों से स्पष्ट होता है कि रूद्र शब्द में रूद् धातु कर्म पर आधारित था। कालान्तरमें रूका ऐतिहासिक कारण भी हो गया जिसे कई ४४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क - -
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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