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________________ चला लिया गया है। नैगम काण्डके निर्वचनोंका मूल्यांकन प्रकृत शोध प्रबंध के सप्तम अध्यायमें किया गया है। निघण्टुका अन्तिम अध्याय दैवत काण्ड कहलाता है। देवताओंके नाम से सम्बद्ध पदोंका संकलन दैवतकाण्ड है। निघण्टुका अन्तिम अर्थात् पांचवा अध्याय छ: खण्डोंमें विभाजित है। इनमें क्रमशः अग्नि आदि-३, द्रविणोदा आदि-१३, अश्व आदि-३६, वायु आदि-३२,श्येन आदि.३६ तथा अश्विनौ आदि-३१ पद संकलित हैं। इन पदोंके निर्वचन निरुक्तके क्रमशः सप्तम, अष्टम, नवम, दशम, एकादश एवं द्वादश अध्यायों में प्राप्त होते हैं। निघण्टु के दैवत काण्डके प्रथम खण्डमें संकलित तीन पदोंकी व्याख्या में यास्क निरुक्तका पूरा सप्तम अध्याय लगाते हैं। निरुक्तके सप्तम अध्यायमें ३७ निर्वचन हैं जिनमे ३४ निर्वचन प्रसंगत: प्राप्त हैं। निघण्टके दैवत काण्डके द्वितीय खण्डमें संकलित १३ पदोंके निर्वचन यास्क निरुक्तके अष्टम अध्यायमें करते हैं। अष्टम अध्यायमें निर्वचनोंकी कुल संख्या- २९ है। इनमें १६ निर्वचन प्रसंगतः प्राप्त हैं। निघण्टुके दैवत काण्डके तृतीय खण्डमें ३६ पद संकलित हैं, इन पदोंके निर्वचन निरुक्तके नवम अध्यायमें किए गये हैं। नवम अध्यायके निवर्चनों की कुल संख्या ७६ हैं जिनमें ४० प्रसंगतः प्राप्त हैं। पुनः निघण्ट्रके दैवत काण्डके चतुर्थ खण्डमें वायु आदि ३२ पद पठित हैं जिनके निर्वचन यास्क निरुक्तके दशम अध्यायमें करते हैं। दशम अध्यायके निर्वचनोंकी कुल संख्या-५७ है। निश्चय ही इनमें २५ निर्वचन प्रसंगतः प्राप्त पदों के हैं। इसी प्रकार निघण्ट्के दैवतकाण्डके पंचम खण्डमें श्येन आदि ३६ पद संकलित हैं जिनके निर्वचन यास्क निरुक्तके एकादश अध्यायमें करते हैं। एकादश अध्यायके निर्वचनोंकी कुल संख्या ५६ है जिसमें २० प्रसंगतः प्राप्त हैं। पुनः दैवत काण्ड के षष्ठ अर्थात् अन्तिम खण्डमें अश्विनौ आदि ३१ पद संकलित हैं, इन पदोंके निर्वचन यास्क निरुक्तके द्वादश अध्यायमें करते हैं. निरुक्तके द्वादश अध्यायके निर्वचनोंकी कुल संख्या ५१ है जिनमें २० निर्वचन प्रसंगतः प्राप्त पदोंके हैं। निरुक्तके त्रयोदश एवं चतुर्दश अध्याय यद्यपि विवादग्रस्त हैं फिर भी निरुक्तके साथ कई संस्करणोंमें प्राप्त होते हैं। अतः इन दो अध्यायों को भी निरुक्तका अंग माना जाता है। इन दो अध्यायों में यास्क ने कुछ मन्त्रों का उल्लेख कर इनके ईश्वरपरक अर्थ का प्रतिपादन किया है। इन्हें अति स्ततियों के अन्तर्गत परिगणित किया जाता है। इस प्रसंग में प्राप्त कुछ पदोंके निर्वचन भी यास्क प्रस्तुत करते हैं। इन दो अध्यायों में क्रमशः सात एवं आठ निर्वचन प्राप्त होते हैं जो किसी न किसी प्रकार देवताओं से सम्बद्ध हैं। परिणामस्वरूप दैवत ५०२:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क ।
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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