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________________ है। यास्कके उपर्युक्त निर्वचनसे प्रतीत होता है कि यह नाम समी नदियोंके विशेषणके रूप में प्रयुक्त है।६९ राय का मंतव्य है कि असिक्नी तथा वितस्ता नदियोंके मिलनेके बाद बनने वाली नदी मरूढधा है जो बादमें परम्णीमें मिलती है सिमर ने भी इसी मंतव्यको स्वीकार किया है। लेकिन लुडविगके विचारसे परूष्णी, असिक्नी तथा वितस्ताके संगमके बाद बनने वाली नदीका नाम मरुद्धधा है। मैकडोनेल तथा कीथ रायके विचार पुष्टिको ही अधिक संगत मानते हैं।७३ (५१) वितस्ता :- यह एक नदी विशेषका नाम है। निरुक्तके अनुसार वितस्ताऽविदग्धा अर्थात् यह नदी अविदग्ध थी, जली नहीं थी। ब्राह्मण ग्रन्थोंके अनुसार एक अनुश्रुति प्रचलित है-वैदेहिक नाम की अग्निने सभी नदियोंको जला दिया। केवल वितस्ता बची रही। इसीलिए अविदग्ध होनेके कारण यह नदी वितस्ता कहलायी।७४ इसके अनुसार अविदग्धासे वितस्ता माना जायगा अविदग्धा-विदग्धावितस्ता। (२) विवृद्धा महाकूलार अर्थात् जो बी हुई किनारों वाली है या बड़े किनारों वाली है। इसके अनुसार विवृद्धासे वितस्ता मानी गयी है। प्रथम निर्वचनमें आंशिक ध्वन्यात्मकता है। दोनों निर्वचनोंका अर्थात्मक महत्व है। प्रथम निर्वचन ऐतिहासिक आधारसे युक्त है। द्वितीय निर्वचन रूपात्मक आधार स्खता है। वितस्ताका आधुनिक काश्मीरी रूप वेथ है। मुसलमान इतिहासकारोंने वितस्ता को विहूत या विहत के रूपमें कर दिया है। (५२) आर्जिकीया :- यह एक नदी विशेषका नाम है। इसे विपाशा मी कहते हैं। निरुक्तके अनुसार आर्जिकीयां विपाडित्याहुः ऋजीक प्रमवा वा ऋजुगामिनी वा अर्थात् आर्जिकीया ही विपाट् कहलाती है। यह ऋजीक नामक पर्वतसे निकली हुई है या सीधे बहने वाली ऋजुगामिनी है। इसके अनुसार ऋजीकसे आर्जिक आर्जिकीया माना जायगा। ऋजुगामिनीसे आर्जिकीयामें पूर्ण ध्वन्यात्मकता नहीं है। ऋजीक्से आर्जिकीया ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक महत्व रखता है। माषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। इस नदी का एक दूसरा नाम उरञ्जिरा भी है। जिसका अर्थ होता है काफी जल वाली। (५३) विपाट् :- यह आर्जिकीया नदीका ही दूसरा नाम है। निरुक्त के अनुसार (१) विपाटनाद्वार अर्थात् यह नदी तीव्र गतिसे चल कर मूमि को उखाड़ती रहती है। इसके अनुसार इस शब्दमें वि + पटगतौ धातुका योग है। (२) विपाशनाद्वार अर्थात् पाशसे रहित होने के कारण विपाश-विपाट् कहलायी। पहले इस नदी का नाम उलगिरा था उरुञ्जिरा का अर्थ होता है प्रमूत जल ४३८:व्युत्पत्ति विज्ञान और प्राचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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