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________________ (ख) निरुक्तके अष्टम अध्यायके निर्वचनोंका मूल्यांकन निघुण्टके पंचम अध्यायमें देवताओंके नाम संकलित हैं। परिणामतः इसे दैवत काण्ड कहा गया है। इन नामोंको छ खण्डोंमें पढ़ा गया है। द्वितीय खण्डमें१३नाम हैं। ये सभी नाम एक दूसरेके पर्याय नहीं बल्कि स्वतंत्र हैं। इन नामोंके द्वारा देवताओंकी स्तुति करना यास्कका मूल उद्देश्य है। देवताओंकी स्तुतिमें प्रयुक्त होनेके कारणये काण्ड दैवत काण्ड कहलाते हैं।यास्कने निघण्ट् पठित पंचम अध्यायके द्वितीय खण्डमें प्राप्त१३नामोंका निर्वचन तो प्रस्तुत किया ही है प्रसंगतः प्राप्त१६अतिरिक्त शब्दोंके निर्वचन भी प्रस्तुत किये हैं। . अष्टम अध्यायमें कुल २९ निर्वचन प्राप्त होते है जिनमें १३ निघण्टु पठित तथा १६ प्रसंगतः प्राप्त हैं। सभी निर्वचन प्रक्रियाकी दृष्टिसे तथा भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे महत्वपूर्ण हैं। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे उपयुक्त निर्वचनोंमें द्रविणोदा धिष्ण्यः, वनस्पतिः, वनम्, आप्रियः, इध्मः, नराशंसः, वर्हिः, वरीयः, स्योनम्, उषासानक्ता, नक्ता, शुक्रम्, पेशः, भारती, आविः, चारूः, जिम, रजिष्ठम् तथा स्वाहा उल्लेखनीय है। ईलः, तथा उरुः शब्दमें ध्वन्यात्मक शैथिल्य है। द्रविणसः, तनुनपात,यहव, वितरम,द्वार: और रजिष्ठम शब्द भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे अपूर्ण हैं। वनस्पतिः तथा इध्म शब्दोंके निर्वचन आख्यातज सिद्धान्त पर आधारित हैं। तन्नपात शब्दके निर्वचनमें सम्बन्धात्मक आधार अपनाया गया है।ऊरुः एवंनक्ता शब्दके निर्वचन दृश्यात्मक आधार पर आधृत हैं।शुक्र शब्दमें सादृश्य की परिकल्पनाकी गयी है। इस अध्यायके प्रत्येक निर्वचनोंका पृथक् मूल्यांकन द्रष्टव्य है: (१) द्रविणोदा :- इसका अर्थ होता है - धनदाता या बलदाता। निरुक्तके अनुसार - धनं द्रविणमुच्यते यदेनमभिद्रवन्ति' अर्थात् धनको द्रविण कहा जाता है। इस धन की ओर लोग दौड़ते हैं। इसके अनुसार द्रविण शब्दमें द्रु गतौ धातुका योग है। यदेनेनाभिद्रवन्ति' अर्थात् इससे युक्त होकर लोग गतियुक्त होते हैं। इसके अनुसार भी द्रविण शब्दमें द्रु गतौ धातुका योग है। द्रविणम् - तस्य दाता द्रविणोदाः अर्थात् द्रविण (धन या वल)+दाता= द्रविण -दाता -(दा) -द्रविणोदा। इसमें द्रविण दा धातुका योग है। यह निर्वचन प्रक्रिया पर आधारित है। क्रौष्टुकिः के अनुसार द्रविणोदाका अर्थ इन्द्र है। आचार्य शाकपूणिः द्रविणोदा अग्निको कहते है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार द्रु धातुसे इनन् प्रत्यय कर द्रविण +दा + क्विप् प्रत्यय कर द्रविणोदा शब्द बनाया जा सकता है। निरुक्तमें ही द्रविणोदस् को ऋत्विज कहा गया है। ४१०:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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