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________________ ध्वन्यात्मक आधार किंचित् शिथिल है। दो धातुओंके मध्यमे भी प्रत्यय की कल्पना की गयी है। अर्थात्मक आधार इसका पूर्ण उपयुक्त है। अर्थोपलब्धिके लिए ही यास्क को अनेक धातुओं की कल्पना करती पड़ी है। व्याकरणके अनुसार मिथ् धातुसे उनन् प्रत्यय कर मिथुन शब्द बनाया जा सकता है।६६ -: सन्दर्भ संकेत :१. नि० ७।३, २.दी इटमोलोजीज ऑफ यास्क, पृ. ५०, ३. मन्त्रोवेद दिशेष स्थाद्देवादीनां च साधने। गुह्यवादेडपि च पुमान्...|| मेदिनी.१२८७४-७५, ४. अष्टा. ३।३।१८, १९, ५. मन्यते ज्ञायते विचार्यते वा ईश्वरादेशः अनेन इति मन्त्रः, ६. चन्देरादेश्च छ:- उणा. ४।२१९, ७. छान्दो. १।४,८.ऐ.आ. २५, ९. अर्तिस्तु सु. उणा. १।१४०, १०. तेन हि विशेषत इज्येत- नि.दु.वृ. ७।३. ११. उणा. २।११७, १२. साम आदि शब्दोंके मूलान्वेषक नैदान कहलाते हैं। निदान ग्रन्थ विशेष का अध्येता भी नैदान कहलाता है। (निदानमधीते वेत्तिवा नैदान:). १३. तया हि गीयन्ते-स्तूयन्ते देवता : नि.दु.वृ. ७।३, १४. नि. ७।३, देवता ब्रा. ३।३,१५. आतोऽनुपसर्गे- अष्टा. ३१२।३,१६.दी इटीमोलोजीज आफ यास्क, पृ.१०२,१७. इगपधज्ञाप्रीकिर: क:-अष्टा,३।१।१३५ शकन्ध्वादि- वा.६।१।२४, १८. नि.दु.वृ. ७३, १९. अष्टा . ३।१।१३४, २०. नि. ७।३ दैवत ब्रा. ३४, २१. गायत्रा त्रिभिरष्टाक्षरैः समाप्यते। पुनरपरः चतुर्थः पादो येन तामेव अनुष्टोभति तस्मादनुष्टप- नि.दु.वृ. ७।३, २२. उणा. २१८४, अष्टा. ४।१।६.२३. अष्टा. ३।३।९४, २४. दी इटीमोलोजीज आफ यास्क, पृ. १०२, २५. देव. बा. ३, २६. उगितश्च- अष्टा. ४।१६, ६।४।४०, ६।१७१, २७. विराधनादूणाक्षरा वैकल्याद्विराध्यन्तीव हि सा- नि.दु.तृ.७।३,२८. मध्याल्पाक्षरपादा या सापि पिपीलिका मध्येव भवति पिपीलिकास्वरूपा-नि.दु.वृ. ७।३, २९. सत्सूद्विष. अष्टा. ३।२।६१, ३०. अष्टा . ३।३।१९. ३१. स्वार्थे कन्- अष्टा. ५।४५, ३२. नि. ७।४, ३३. त्र्यक्षरं हृदयमिति ह इत्येकमक्षरमभिहरन्त्यस्मै स्वाश्चान्ये च य एवं वेद द इत्येकमक्षरं ददत्यस्मै स्वाश्चान्ये च य एनं वेद यमित्येकमक्षरमेति स्वर्ग लोकं य एनं वेद। वृह. उ. ५।३।१ पृ. ११८८, ३४. ऋ. १।१।१ द्र. सायण भाष्य, ३५. ददाति ह्यसौ ऐश्वर्याणि- नि.दु.वृ. ३सप्तम अध्याय यादृगिव वै देवेभ्य: करोति, तादृगिवास्मै देवाः कुर्वन्ति- ऐ.वा. ३।६, ३६. दीप्यति ह्यसौ तेजो मयत्वात्- नि.दु.वृ. ७।४, ३७. ऋ. १।१।१-द्र. (सायण भाष्य), ३८. नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यच ४०८:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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