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________________ (नञ्) अ + क्रम् + ड- असक्राम शब्द बनाया जा सकता है। (१८०) आधव:- इसका अर्थ होता है कंपा देने वाला। निरुक्त के अनुसार आधव आधवनात्।१२५अर्थात् यह शब्द आ+ धूञ् कम्पने धातुके योगसे निष्पन्न होता है। आधावन क्रिया के कारण ही आधव : कहा जाता है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें इस शब्दका प्रयोग उक्त अर्थमें प्राय: नहीं देखा जाता। व्याकरणके अनुसार आ +धुञ् +अप् प्रत्यय कर आधव : शब्द बनाया जा सकता है। (१८१) अनवब्रव :- इसका अर्थ होता है निर्दोष वचन वाला। निरुक्तके अनुसार अनवव्रवोऽनवक्षिप्तवचन:१४४ अर्थात् अनवक्षिप्त बचनवाला, सार्थक बचन वाला। इसके अनुसार इस शब्दमें नञ्-अन्+अव + बू+ अप् प्रत्ययका योग है। यास्कने इस शब्दका अर्थ मात्र ही संकेत किया है। अत: इस निर्वचनका अर्थात्मक महत्त्व है। निर्वचन प्रक्रिया एवं भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त निर्वचन नहीं माना जायगा। (१८२) सदान्वे :- यह सम्बोधन पद है। इसका अर्थ होता है. शब्द करने वाली। निरुक्तके अनुसार- सदान्वे सदानोनुवे शब्दकारिके१४४ अर्थात् यह शब्द सदा + न शब्दे धातुके योगसे निष्पन्न होता है- सदा + वन् = सदान्व + टाप् = सदान्वा, सम्बोधन में सदान्वे। इसका अर्थ होगा। सदा शब्द करने वाली। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। (१८३) शिरिंबिठ :- यह मेघका वाचक है। निरुक्तके अनुसार शिरिविठो मेघः। शीर्यते बिठे।१४४ अर्थात बिठका अर्थ अन्तरिक्ष होता है अन्तरिक्ष में हनन होने वाला शिरिबिठ कहलायगा। इसके अनुसार इस शब्द में शृ हिंसायाम् धातुसे शिरि+ विठः= शिरि बिठः है। शिरिः बिठे यस्य स शिरिबिठः। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। शिरिम्बिठ भारद्वाजका भी नाम है- शिरिम्बिठो भारद्वाजः इसका आधार ऐतिहासिक माना जायगा। भारद्वाज ऐतिहासिक राजा हैं। या (अत्यधिक अन्न धारण करने वाला भी भारद्वाज कहलाता है।) (१८४) काण :- यह एकाक्षका वाचक है। निरुक्तके अनुसार काणोऽविक्रान्त दर्शन इत्यौपमन्यव:१४४ अर्थात् यास्कने आचार्य औपमन्यवका एतत्सम्बन्धी विचार प्रथमतः उपस्थित किया है। आचार्य औपमन्वके अनुसार अविक्रान्तदर्शी या विकृतलोचन ३८४:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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