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________________ करने पर अस्मे शब्द निष्पन्न होता है । २९ शे प्रत्यय किसी भी विभक्तिके स्थान में आ सकता है। यह सुवन्त पद है इसलिए किसी भी सुप् विभिक्ति के स्थानमें इसका प्रयोग होगा। निरुक्तमें विभिन्न विभक्तियों में वैदिक प्रयोगों का प्रदर्शन किया गया है। जिससे विभिन्न विभक्तियों का अर्थ स्पष्ट हो जाता है : विभक्तियां वैदिक प्रयोग १. अस्मे ते बन्धु३० प्रथमा बहुबचन द्वितीया बहुबचन २. अस्मे यातं नासत्यासजोषा ३१ ३ . अस्मे समानेभिर्वृषभपौस्येभिः ३२ तृतीया बहुबचन चतुर्थी बहुबचन ४. अस्मे प्रयन्धि मधवनृजीषन् ३३ ५. अस्मे आराच्चिद्द्द्वेष: सुनुतर्युयोतु३४पंचमी बहुबचन ६. ऊर्व इव पप्रथे कामो अस्मे ३५ ७. अस्मे धत्त वसवो वसूनि३६ विभिन्न अर्थों में अस्मे वयम् के अर्थ में अस्मान् के अर्थ में अस्माभि: के अर्थ में .अस्मभ्यम् के अर्थ में अस्मात् के अर्थ में षष्ठी बहुबचन सप्तमी बहुबचन अस्माकम् के अर्थमें अस्मासु के अर्थ में यास्क ने अस्मे शब्दका विभिन्न विभक्तियों में प्रयोग प्रदर्शन मात्र किया है। इसके निर्वचनके लिए अर्थ स्पष्ट करना ही अपना मूल उद्देश्य माना है। भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे या निर्वचन प्रक्रियाकी दृष्टिसे इसे पूर्ण निर्वचन नहीं माना जायगा । (४८) पाथ :- यह अनेकार्थक है। पथिन् शब्दसे पाथः बनता है। पाथः शब्द की निरुक्ति निरुक्तके द्वितीय अध्यायमें की गयी है जिसमें पत् गतौ, पद गतौ या पन्थ् गतौ धातुका योग माना गया है । ३७ वहां यह मार्गके अर्थ में प्रयुक्त है । पन्था से ही पाथः शब्दका भी निर्वचन हो जाता है। निरुक्त के षष्ट अध्याय में पाथः शब्दके निर्वचन कई अर्थों में किए गए हैं- पाथ: का अर्थ अन्तरिक्ष होता है जो पथिन् शब्दके निर्वचनसे ही व्याख्यात है १- पाथः अन्तरिक्षम् २२ पथा व्याख्यातम् ३७ जलको भी पाथः कहा जाता है २- उदकमपि पाथ उच्यते पानात् अर्थात् उदक् वाचक पाथः शब्दका निर्वचन पा पाने धातुसे किया गया है क्योंकि इसका पान किया जाता है। ३- अन्नमपि पाथ उच्यते पानादेव२२ अर्थात् अन्नको भी पाथः कहा जाता है क्योंकि यह खाया जाता है। इसके अनुसार इसमें पा धातुका योग है। लगता है पा धातु वैदिक कालमें भक्षणार्थक भी था। इस प्रकार प्रथम निर्वचनमें पत् गतौ या पगतौ या पन्थ् गतौ से पाथः, द्वितीय एवं तृतीय निर्वचनों में पा पाने या भक्षणे धातुसे पाथः को व्युत्पन्न माना गया है। भाषा विज्ञानके ३४८ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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