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________________ अश् = आशाको संगत माना जायगा। प्रथम निर्वचनमें ध्वन्यात्मक औदासिन्य है। यह अर्थात्मक महत्त्व रखता है। व्याकरणके अनुसार आर अश् व्याप्तौ धातुसे अच् प्रत्यय कर आशा शब्द बनाया जा सकता है।४ लौकिक संस्कृतमें भी आशा दिशाका वाचक है। दिशा के अतिरिक्त इसका अर्थ तृष्णा भी होता है । ५ तृष्णा वाचक आशा भी इसी निर्वचनसे माना जायगा क्योंकि तृष्णा भी व्याप्त रहती है। . (५) काशि:- यह मुष्टि (मुट्ठी) का वाचक है। निरुक्तके अनुसार काशि: मुष्टि: प्रकाशनात्१ अर्थात् प्रकाशित होने के कारण काशि: कही जाती है क्योंकि मुट्ठी में रखी हुई वस्तु प्रकाशित होती है। इस निर्वचनके अनुसार काशि: शब्दमें काश् दीप्तौ धातु का योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार काश् दीप्तौ + इन्६ प्रत्यय कर काशि: शब्द बनाया जा सकता है। (६) मुष्टि :- इसका अर्थ होता है-मुट्ठी । निरुक्तके अनुसार १- मुष्टि-माचनाद्वा । अर्थात् यह शब्द मुच् मोक्षणे धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह बन्धन से छुड़ाता है - मुच् +क्तिन् = मुष्टि: । २- मोषणाद्वा अर्थात् यह शब्द मुष् स्तेये धातुके योगसे निषपन्न होता है क्योंकि इससे वस्तुएं चुराई जाती है-मुष्- क्तिन् = मुष्टिः। ३मोहनाद्वा अर्थात् यह शब्द मुह् वैचित्ये धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि मुष्टिगत वस्तुकी जानकारीमें व्यक्ति संदिग्ध रहता है। मुह् + क्तिच् = मुष्टि: । द्वितीय निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारसे युक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। प्रथम एवं तृतीय निर्वचनोंमें ध्वनिगत औदासिन्य है। अर्थात्मक आधार सभी निर्वचनों का उपयुक्त है। इन निर्वचनोंसे मुष्टि जन्य कार्यकलापोंका संकेत मिलता है। व्याकरणके अनुसार मुष् + क्तिच् प्रत्यय कर मुष्ठिः शब्दं बनाया जा सकता है। (७) रोदसी :- यह रोधसी अर्थात् द्यावा पृथ्वीका वाचक है। निरुक्तकें अनुसार रोदसी रोधसी द्यावापृथिव्यौ । विरोधनात्र अर्थात् रोधसी शब्द ही रोदसी हो गया है। यह द्यावा पृथिवीके प्राणियोंको रोके रहता है। इसके अनुसार इसमें ध् आवरणे धातुका योग है- रूध् + असुन् = रोधस् -द्विक्चनमें रोधसी तथा ध का द होकर रोदसी शब्द हुआ इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। द वर्ण का ध महाप्राणीकरण माना जायगा। व्याकरणके अनुसार रूद्+असुन्७ प्रत्यय कर रोदस् - रोघसी शब्द बनाया जा सकता है। ३३७ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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