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________________ इसका ध्वन्यात्मक आधार संगत है। यास्क भी प्रथधातुसे ही पृथिवीका निर्वचन मानते हैं । यह परोक्ष वृत्याश्रित है। 3. “यज्जातः पशूनविन्दत तज्जातवेदसो जातवेदस्त्वम् ।*50 यहां जातवेदस्शब्द का निर्वचन प्राप्त होता है। जातः+अविन्दत् के योगसे जातवेदस् में जन् तथा विधातुका योग है। यह निर्वचन ऐतिहासिक आधार रखता है। निरुक्तमें भी उद्धरणके रूपमें यह प्राप्त होता है। इन निर्वचनोंके परिदर्शनसे स्पष्ट है कि यजुर्वेदकी दोनों शाखाओं में निर्वचन प्राप्त हैं। इन निर्वचनोंमें कुछ प्रत्यक्ष वृत्याश्रित हैं तथ कुछ परोक्षवृत्याश्रित । शब्दोंकी ऐतिहासिक प्रसिद्धि कृष्ण यजुर्वेदके निर्वचनोंके आधार हैं। साम संहितामें निर्वचनों का स्वरूप : सामवेद गान प्रधान संहिता है। यों तो वैदिक संहितायें सभी गेय हैं, लेकिन सामके मन्त्रों की गेयता प्रसिद्ध है। सामवेदमें ऋग्वेद तथा यजुर्वेद के मंत्र भी पठित हैं। अन्य वेदोंकी भॉति सामवेदमें भी निर्वचन प्राप्त होते हैं। सामवेदके बहुत सारे निर्वचन तो ऋग्वेद एवं यजुर्वेदके निर्वचनोंसे मिलते जुलते हैं, क्योंकि वे मंत्र वहां भी पठित हैं। सामवेदके कुछ निर्वचनों का दर्शन अपेक्षित है: “येन देवाः पवित्रेणात्मानं पुनते सदा 52 इस मंत्रांशमें पवित्र शब्द व्याख्यात है। पुनते क्रियापदके प्रयोगसे पवित्र संज्ञापदका सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है। पवित्र शब्दमें पूञ् पवने धातुका योग है। पुनते क्रिया इसीधातुको संकेत करती है। यह निर्वचन प्रत्यक्षवृत्याश्रित है क्योंकि इसमें धातु एवं प्रत्यय स्पष्ट परिलक्षित हैं। धातु का संकेत भी सम्बद्ध अर्थकीओर उन्मुख है। पवित्र शब्दका निर्वचन यजुर्वेदमें भी इसी प्रकार प्राप्त होता है। निरुक्तमें भी इसी प्रकारका निर्वचन है। “विप्राय गाथं गायत*55 इस मंत्रांशमें गाथं शब्दका सम्बन्ध गायत क्रियासे स्पष्ट परिलक्षित है। गायत क्रियामें गैधातुका योग है । गाथं शब्द भी इसी गैधातुसे निष्पन्न है। यह निर्वचन प्रत्यक्षवृत्याश्रित है। ऋग्वेदमें गाथा शब्द गीत या मंत्रका वाचक है। १९ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क 2.
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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