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________________ यह अनिष्टका शमन करता है। २- शक्नोतेर्वा अर्थात् यह शब्द शक् सामर्थ्य धातुके योगसे निष्पन्न हुआ है क्योंकि कर्मसे मनुष्य सामर्थ्यवान् होता है। प्रथम निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। द्वितीय निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिकोणसे शिथिल है। (६०) ऋजीषी :- इसका अर्थ होता है सोम। निरुक्तके अनुसार - ऋजीषी सोमः यत्सोमस्य पूयमानस्यातिरिच्यते तद् ऋजीषम्। अपार्जितं भवति। ५८ अर्थात् जो पवित्र किए गये सोमका अवशिष्ट भाग रह जाता है वह ऋजीष कहलाता है यह अवशिष्ट भाग फेंक दिए जाते हैं वह अपार्जित या अवशिष्टसे युक्त होनेके कारण ऋजीपी कहलाता है जो सोमका वाचक है। इसके अनुसार ऋजीषी शब्दमें अर्जु अर्जने धातुका योग है - अर्ज - अज् +ईष् +ऋजीषी। ऋजीपीका अर्थ इन्द्र भी होता है - अथाप्येन्द्रो निगमो भवति।५८ ऋजीषीका प्रयोग इन्द्रके अर्थमें ऋग्वेदमें प्राप्त होता है. ऋजीषी वज्री ऋजीषीका अर्थ होगा सोमका अवशिष्टांश खाने वाला। इन्द्राश्व तथा उससे युक्तको ऋजीषी कहा जायगा। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे उपयुक्त माना जायगा। व्याकरणके अनुसार अर्ज धातुसे ऋज + ईषन्८० +ऋजीष · ऋजीपी बनाया जा सकता है।५८ ६१) धाना :- इसका अर्थ होता है भुने हुए जौ। निरुक्तके अनुसार १- धाना भ्राष्टे हिला भवन्ति५८ अर्थात् ये भांडमें भने जाते है। यह घोड़ेका भोज्य है। इसके अनुसार इस शब्दमें धा धातुका योग है। २ . फले हिता भवन्तीतिवा५८ अर्थात् ये फलक पर स्खे जाते है। इसके अनुसारभी धाना शब्दमें धा धातुका योग है। उपर्युक्त दोनों निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें भी धाना शब्द मुने हुए जौके लिए प्रयुक्त होता है। व्याकरणके अनुसार डुधाञ् धातुसे नः८२ प्रत्यय कर धानः धानाः बनाया जा सकता है। (६२) बब्बाम् :- इसका अर्थ होता है भक्षण करें। निरुक्त के अनुसार आदिनाभ्यासेनोपहितेनोपधामादत्ते। बभस्तिरतिकर्मा। ५८ अर्थात् यह शब्द भस् मक्षणे धातु के आदि स्थित अभ्यास वर्ण को उपस्थापित कर तथा उपधा को निकाल कर बनाया जाता है। भस् धातुका अभ्यास - भस् - भस् + ताम् . भ + भस्ताम् · बभस् ताम् . बब्धाम् इस शब्दमें भस् धातु का योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात् आधार उपयुक्त है। धातु ३०९ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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