SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सादृश्यके आधार पर इन लोगोंको भी वराह कहा जाने लगा। वेदोंसे उद्धरण देकर स्पष्ट कर देते हैंकि वराहः शब्द अंगिरस गोत्रीय लोगोंके लिए३५ तथा वराह शब्द मध्यमस्थानीय देवताओंके लिए२६ भी प्रयुक्त होता है। लौकिक संस्कृतमें वराहः शब्दका प्रयोग शूकरके लिए ही विशेष रूपमें होता है। इस प्रकार वराह शब्दमें अर्थ संकोच माना जा सकता है। भाषा विज्ञानके अनुसार वर + आ + हृ से वराहः मानना ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक संगतिके लिए उपयुक्त होगा। शेष निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखते हैं। व्याकरणके अनुसार वर + आ + हन् + ड प्रत्यय कर वराह शब्द बनाया जा सकता है।३७ (२८) स्वसराणि :- स्वसरका बहुबचन रूप स्वसराणि है। स्वसरका अर्थ होता है दिन। निरुक्तके अनुसार १. स्वसराणि अहानि भवन्ति। स्वयं सारीण्यपि वा' अर्थात् ये दिन स्वयं गतिमान होते हैं या चलते हैं। इसके अनुसार स्वर शब्द में स्व + सृ गतौ धातुका योग है। स्वरादित्यो भवति स एनानि सारयति।१ अर्थात् स्व:का अर्थ आदित्य होता है। आदित्य इन्हें (दिन को) गति देता है या चलाता है।३८ इसके अनुसार स्वसर शब्दमें स्व:- + स गतौ धातुका योग है स्व: संज्ञा पद आदित्यका वाचक है। दोनों निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। दोनों निर्वचनोंमें दृश्यात्मक आधार अपनाया गया है। (२९) शर्या :- यह शब्द अनेकार्थक है। यास्कने कई अर्थों में इसका निर्वचन प्रस्तुत किया है-१-शर्या अंगुलयो भवन्ति। सृजन्तिकर्माणि। अर्थात् शर्या अंगुलियां होती है, क्योंकि वह कर्मोका सृजन करती है या काम करती रहती है। इसके अनुसार शर्याः शब्दमें सृज् धातुका योग है। सृज से सर्जा-शर्या। शर्या:का अर्थ वाण भी होता है-शर्या इषवः शरमय्य:' अर्थात् ये वाण सरकण्डोंसे बने होते हैं इसलिए शर्या: कहत्यते हैं। इसके अनुसार शर्याः शब्दमें शृ हिंसायां + अप् = शरः + यत् (मयट् अर्थम) प्रत्ययका योग है। वाणके अर्थमें शर्या:का निर्वचन ध्वन्यात्मक आधारसे युक्त है। अर्थात्मक दृष्टिकोणसे दोनों निर्वचन उपयुक्त हैं। वाणके अर्थ में प्राप्त शर्याका निर्वचन भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे उपयुक्त है। (३०)शर:- इसका अर्थ होता है वाणानिरुक्तके अनुसार शरः शृणाते:१ अर्थात् यह हिंसा करता है। वाणका प्रयोग मारने (हिंसा)के लिए होता है।इसके अनुसार शरःशब्दमें शृ हिंसायां धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है।भाषा विज्ञानके अनुसारइसे उपयुक्त माना जाएगा।व्याकरणके अनुसार शृ २९९ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy