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________________ स्तुतिकर्मण: अर्थात् भन्दना शब्द स्तुत्यर्थक भन्द् धातुके योगसे निष्पन्न हुआ है। इसके अनुसार मन्दनाका अर्थ होगा जिससे स्तुतिकी जाए। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा। भन्दना शब्दका प्रयोग स्तुतिके अर्थमें लौकिक संस्कृतमें प्राय: नहीं देखा जाता। इससे मिलता जुलता वन्दना शब्द लौकिक संस्कृतमें मिलता है। लगता है भन्दना ही वन्दना रूपमें प्राप्त होता है। यद्यपि वन्द् धातु अभिवादन एवं स्तुति अर्थमें धातुपाठमें उपलब्ध है। (१६) आहून :- इसका अर्थ होता है कटु भाषणशीला। यह सम्बोधनका पद है। निरुक्तके अनुसार आहंसीव भाषमाणेत्यसभ्यभाषणादाहना इव भवति। एतस्मादाहनः स्यात्१ अर्थात् आघात सी पहुंचाती हुई भाषण करती असभ्य भाषण से आघात करने वाली आघातक सी हो जाती है।२२ अत: आहन ऐसा सम्बोधन किया जाता है। इसके अनुसार आहन शब्दमें आ + हन् धातुका योग है इसका ध्वन्यात्मक तथा अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। कटुभाषिणीके अर्थमे लक्षणाका आधार माना जा सकता है। व्याकरणके अनुसार आ + हन् +असुन् = आहनस् - आहना: सम्बोधनमें आहनः पद बनाया जा सकता है। आहनःको हथौड़ेके सामान चोट करने वाली कहा जाय तो अधिक अच्छा होगा। हन्का ही हथौड़े के लिए घन शब्दका प्रयोग हिन्दी भाषामें प्रचलित है अर्थात्जो चोट पहुंचाए उसे घन कहते हैं। (१७) नद :- इसका अर्थ ऋषि होता है। निरुक्तके अनुसार-ऋषिर्नदो भवति।१ नदतेः स्तुतिकर्मणः अर्थात् नदः शब्द नद् स्तुतौ धातुसे निष्पन्न होता है क्योंकि वे स्तुति मुक्त होते हैं। णद् धातु स्तुति अर्थमें निघण्टु पठित है।२४ लौकिक संस्कृतमें पद्-अव्यक्ते शब्दे धातु प्रसिद्ध है। उपर्युक्त निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। लौकिक संस्कृतमें नदका अर्थ नदी होता है। व्याकरणके अनुसार णद् अव्यक्ते धातुसे अच्५ प्रत्यय कर नदः शब्द बनाया जा सकता है। नदियां भी प्रवाहित होने पर ध्वनि करती है। नद्धातुमें अर्थापकर्ष पारस जाता है। यास्क नदीको भी नद्धातुसे निष्पन्न मानते हैं क्योंकि वे शब्दवती होती है। ध्वनिसादृश्यके कारण नदीमें भी नद् धातु माना गया है।२६ (१८) अक्षा:- यह अनेकार्थक है। निरुक्तमें इसके कई अर्थ किए गये हैं। इससे सम्बद्धकई आचार्योंके मत प्राप्तहोते हैं।१-अक्षा: अश्नोतेरित्येवमेके अर्थात् कुछ २९५ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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