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________________ धा+क्त प्रत्ययसे निष्पन्न है । धा धातुका हि आदेश सम्भवतः निधि शब्दमें प्रत्यय के जैसा प्रयुक्त है। फलतः अर्थ स्पष्ट करने मात्र उद्देश्यसे युक्त इस निर्वचन को अर्थ निर्वचन कहा जायेगा। उपर्युक्त निर्वचनोंके परिदर्शनसे स्पष्ट हो जाता है कि ऋग्वेदमें प्रत्यक्ष वृत्याश्रित एवं परोक्ष वृत्याश्रित, दोनों प्रकारके निर्वचन प्राप्त होते हैं। निर्वचन क्रममें ध्वनिपरिवर्तन भी स्पष्ट परिलक्षित होते हैं । ऋग्वेद संहिताके निर्वचन रूपात्मक दृष्टिसे शब्द निर्वचन एवं अर्थ निर्वचन हैं | ध्वन्यंशकी व्याख्या कर शब्दके मूल को स्पष्ट करना शब्द निर्वचन है। ऋग्वेदके इन प्रदर्शनों में अनु धातुसे अर्ककी व्याख्या इसी श्रेणीकी है। निरुक्त सिद्धान्त, वर्णागम, वर्ण विपर्यय, वर्णविकार एवं वर्णनाशका आश्रयण भी इन स्थलोंमें होता है। अर्थ निर्वचनमें ध्वन्यात्मक आधारकी उपेक्षा कर भी अर्थ स्पष्ट करनेका प्रयत्न किया जाता है। ऐसे शब्दोंके ध्वन्यंशकी व्याख्या न होकर भी अर्थ स्पष्ट मात्र हो जाता है। उदाहरण संख्या पांचसे यह स्पष्ट हो जाता है जिसमें निधि शब्दको स्पष्ट करनेके लिए हितः शब्दका प्रयोग वहीं कर दिया गया है। यजुर्वेद संहितामें निर्वचनों का स्वरूप : यजुर्वेदके दो रूप प्राप्त होते हैं, 1- कृष्ण यजुर्वेद एवं 2-शुक्ल यजुर्वेद । उत्तर भारतमें शुक्ल यजुर्वेद एवं दक्षिण भारत में कृष्ण यजुर्वेदकी शाखायें विशिष्ट रूपमें उपलब्ध होती हैं। शुक्ल यजुर्वेद चालीस अध्यायोंमें संहितात्मक रूपमें विद्यमान है। कृष्ण यजुर्वेदमें मन्त्र ब्राह्मणात्मक सम्मिलित रूपका दर्शन होता हैं यजुर्वेदके निर्वचनों का स्वरूप द्रष्टव्य है। 1. वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्त्रधारम् । · देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः ।। इसमें प्रयुक्त पवित्र शब्द पुनातु क्रियाके साहचर्यसे स्पष्ट हो जाता है। फलतः पवित्र शब्द पुपवने धातुसे व्याख्यात है। इसे प्रत्यक्षवृत्याश्रित निर्वचन माना जायेगा। निरुक्त में भी पवित्र शब्दको पुपवने धातुसे ही निष्पन्न माना गया 2. “धूरसि धूर्वधूर्वन्तं धूर्व तं योऽस्मान् धूर्वति तं धूर्वयं वयं धूमिः । देवानामसि वह्नितमं सस्नितमं पप्रितमं जुष्टतमं देवहूतमम्।।"30 १६ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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