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________________ दोनों निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार - वश् कान्तौ या वा” शब्दे धातुसे कानच् प्रत्यय कर वावशान: शब्द बनायाजा सकता है। (६) वार्यम् :- इसका अर्थ होता है वरणीय, वरदान। निरुक्तके अनुसार १. वार्यं वृणोते: अर्थात् यह वरण करने योग्य होता है। इसके अनुसार वार्यम् शब्दमें वृञ्वरणे धातुका योग है। २- अथापि वरतमम्' अर्थात् वह वरतम- सर्वोत्कृष्ट होता है। इसके अनुसार भी वार्यम् शब्दमें वृ धातुका ही योग है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार -वृ वरणे + ण्यत् प्रत्यय कर वार्यम् शब्द बनाया जा सकता है। (७) अन्धः :- यह अनेकार्थक है। निरुक्तके अनुसार १-अन्धः इत्यन्न नाम। आध्नीयं भवति१ अर्थात् अन्धः अन्नका नाम है क्योंकि यह सबोंके द्वारा आध्नीय या प्रार्थनीय होता है। इसके अनुसार अन्धः शब्दमें आङ् +ध्यै ध्याने धातुका योग है। २. तमोऽप्यन्ध उच्यते। नास्मिन् ध्यानं भवति१ अर्थात् तम (अन्धकार) को भी अन्धः कहा जाता है क्योंकि इसमें कोई वस्तु देखी नहीं जाती या अन्धकारमें ध्यान नहीं हो पाता। इसके अनुसार अन्धस् शब्दमें न अन् + ध्यै धातुका योग हैं। अन्धकारको अन्धा करने वाला भी कहा जाता है अन्धंतम इति अभिमाषन्ते।१ अन्धा या दृष्टिहीनका वाचक अन्धः शब्दभी इसी प्रकार निष्पन्न होता है ३. अयमपीतरोऽन्धएतस्मादेव१ दृष्टिहीन वाचक अन्ध: भी अन् (नञ्) + ध्यै ध्याने धातुसे ही निष्पन्न होगा क्योंकि वह भी नहीं देखता। अर्थ परीक्षणके लिए अन्धः शब्दमें ध्यै ध्याने धातुका योग मानना यास्ककी विशेषता है। अर्थात्मक महत्त्वसे सभी निर्वचन उपयुक्त हैं। किसीभी निर्वचनका ध्वन्यात्मक आधार पूर्ण नहीं है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत नहीं माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार अन्ध दृष्ट्युपघाते धातुसे अच् प्रत्यय कर अन्धः शब्द बनाया जा सकता है। लौकिक संस्कृतमें अन्नके लिए अन्धः शब्दका प्रयोग प्राय: नहीं देखा जाता। (८) अमत्रम् :- इसका अर्थ होता है पात्र , बर्तन। निरुक्तके अनुसार अमत्र पात्रम् अमा अस्मिन्नदन्ति' अर्थात् इसमें अपरिमित खाते हैं। अपरिमित लोग इसमें भोजन करते हैं। इसके अनुसार अमत्र शब्दमें दो पद खण्ड हैं अम् + अत्रम्। अम् अमाका वाचक है। अमाका अर्थ है अपरिमित। अद्धातु से रक् प्रत्यय के द्वारा अत्रम् पद निष्पन्न है अम् + अत्रम् = अमत्रम्। उपयुक्त अर्थात्मकताके लिए यास्क २९२ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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