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________________ ११४.सुतुकःसुतुकनःसुगभन इत्यर्थःनि.दु.३.४।३, ११५. युवं च्यवानं सनयं यथारथं पुनर्युवानं चरथाय तक्षथुः ऋ. १०।३९।४, ११६. ऐत. वा:८।२१, विशेष-कीकट प्रदेश में च्यवनका आश्रम था जो पुण्यवान् माना जाता था। च्यवनके आश्रमकी चर्चा वाणभट्ट ने अपने हर्षचरितम् में की है। सरस्वती का भूतल अवतरण च्यवनके आश्रममें ही होता है। द्र.वा.पु. एवं हर्षचरितम्,११७.कनिन्युवृषि -उणा.१।१५६,११८.ज्योतीरज उच्यते! उदकं रज उच्यते। लोका रजांस्युच्यन्ते। असृगहनी रजसी उच्यते। नि. ४।३, ११९. भूरजिभ्यां कित्-उणा. ४.२१७, १२०.ज्योती...अनुरंजयति द्रव्याणिस्वेन प्रकोशेन उदकम् स्वेन स्नेहाख्येन गुणेनानुरंजयति। लोका.तेष्वपि हि प्राणिनो रज्यन्ते। नि.दु.वृ.४।३,१२१.ज्योतिर्हर उच्यते।उदकं हर उच्यते।लोका हरांस्युच्यन्ते। असृगहनीहरसी उच्यतेनि.४।३,१२२. नि.दु.वृ. ४।३। क्षीणेपुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति श्रीमद्भ.-९।२१, १२३. पचाद्यच् अष्टा. ३।१।१३४, १२४. पदं देवस्य नमसा व्यन्तः - ऋ. ६।१।४, १२५. वीहि शूर पुरोडाशम्- ऋ. ३१४१।३, १२६. वीतं पातं पयस उस्त्रियायाः ऋ. १।१५३।४, १२७. स्फायि तंचि...वसि काशि शुभिभ्योरक उणा. २।१३, १२८. अष्टा. ८।३।११०, १२९. यमानिलेन्द्रचन्द्रार्क विष्णु सिंहांशुवाजिषु। शुकाहिकपिभेकेषु हरि कपिले त्रिषु।। अम. ३।३।१७४-१७५, १३०. निघण्टु तथा निरुक्त अ.४ापृ.१५२, १३१. शिरीष कुसुमप्रख्याकेचित्पिगंलकप्रभा नि.दु.३.४।३, १३२. अच इः उणा. ४।१३९, १३३. निघण्टु तथा निरुक्त-अ. ४ापृ. १५२, १३४. अष्टा. ६।३।१०९, १३५. उणा. २।९५, १३६. उणा. १।१०, १३७. नाभ्यासन्नद्धा गर्भा जायन्त इत्याहुः नि. ४।३, १३८. अम. को. २।८।५६, १३९. उणा. ४।१२५, १४०. अष्टा. ३।३।९४, १४१. अष्टा. ५।२।१३८, १४२. नि. ११३, १४३. नि. ६६, १४४. नि. ४।४, १४५. निरुक्त मीमांसा-पृ.३४६, १४६. अदितिः कश्यपस्य महर्षेर्धर्मपत्नी, आदित्यादि देवानांजननी च नि.दु.वृ. ४।४, १४७. शत. ब्रा. १०।६।५।५, १४८. द्यति स्यति मा स्थाम् इत् ति किति-अष्टा. ७।४।४०, १४९. अदितिद्यौरिदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः विश्वेदेवा अदितिः पंचजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्।। ऋ १।८९।१०, १५०. सर्वधातुभ्य: ष्ट्रन्-उणा. ४१५९, १५१. नि.दु.वृ. ४।४, १५२. हतो वा प्राप्स्यति स्वर्ग जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः।। श्रीमद्भ. २।३७, १५३. भ्राताभरतेर्हरतिकर्मणः हरते गिभर्तव्यो भवति-नि. ४।४, २८७ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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