SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आधार उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार यह अव्यय माना गया है। इसे नि + चिञ् + डैस् प्रत्यय कर बनाया जा सकता है । १५८ (१००) नीचायमानम् :- इसका अर्थ होता है-नीचे गया हुआ । निरुक्तके अनुसार -निचायमानं नीचैस्यमानम् १४४ अर्थात् नीचे जाते हुए। इसके अनुसार इसमें नीचैः +(अयमान) अय् गतौ धातुका योग है। नीच + अयमान = नीचायमानम् । इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञान के अनुसार इसे उपयुक्त माना जाएगा। (१०१) उच्चै :- यह ऊंचा अर्थके लिए प्रयुक्त होता है । निरुक्तके अनुसार उच्चैरूच्चितं भवति:१४४ अर्थात् ऊपर में गया हुआ होता है। इसके अनुसार इस शब्द में उत् + चिञ् चयने धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार यह अव्यय शब्द है। इसे उत् + चिञ् + डैस् १५९ प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। (१०२) श्येन :- इसका अर्थ होता है बाजपक्षी । निरुक्त के अनुसार श्येन: संशनीयं गच्छति ४४ अर्थात् प्रशंसनीय गतिसे युक्त होनेके कारण श्येन कहलाता है। इसके अनुसार इस शब्दमें शंस् स्तुतौ धातुका योग है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त नहीं है। यह अर्थात्मक महत्त्व रखता है। यास्क निरुक्तके चतुर्दश अध्याय में श्येन का अर्थ आदित्य एवं आत्मा करते हैं। तदनुसार श्येन आदित्यो भवति श्यायतेर्गतिकर्मण: १६० अर्थात् श्येन आदित्य को कहते हैं क्योंकि वह गतिकर्मा है। इसके अनुसार श्येन शब्दमें स्यै गतौ धातुका योग है। श्येन आत्मा भवति श्यायतेर्ज्ञानकर्मण: १६० अर्थात् श्येनका अर्थ आत्मा होता है क्योंकि वह ज्ञान कर्मा है। इसके अनुसार इस शब्दमें ज्ञानार्थक श्यै धातुका योग है। ये दोनों निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोण से उपयुक्त है। वाजपक्षीके अर्थ में भी श्यै गतौ धातुसे इसका निर्वचन मानना ज्यादा संगत होगा । भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे यास्कके अंतिम दोनों निर्वचन सर्वथा संगत हैं। व्याकरणके अनुसार श्यैङ् गतौ + इनच् १६१ प्रत्यय कर श्येनः शब्द बनाया जा सकता है। : (१०३) यूथम् :- यह समूह का वाचक है। निरुक्त के अनुसार-यूथं यौते : समायुतं भवति१४४ अर्थात् इसमें लोग मिले रहते हैं। इसके अनुसार यूथम् शब्द में यु मिश्रणे धातु का योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा २७५ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy