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________________ धातुसे सम्बन्ध अन्यत्र भी देखा जा सकता है।।" यह प्रत्यक्ष वृत्याश्रित निर्वचनमें परिगणित होगा। 5. “सरथेन रथीतमोऽस्माके नाभि युग्मना जेषि जिष्णो हितं धनम् ।।12 इस मन्त्रमें जिष्णोः पदके साथ जेषि क्रियापद प्रयुक्त है। अतः उक्त संज्ञापदमें जि धातुका योग माना जायेगा। यह निर्वचन प्रत्यक्ष वृत्याश्रित है। 6."चित्रमर्क गृणते तुराय मारूताय स्तवसे भरध्वम् ये सहासिसहसा सहन्ते रेजन्ते अग्ने पृथिवी मखेभ्यः । । 13 इस मन्त्रके तृतीय पादमें सहस् संज्ञा पदके साथ सहन्ते क्रिया पद भी प्रयुक्त है। सधातुके योगसे सहन्ते क्रिया निष्पन्न होती है। सहस शब्द में भी सह धातुका योग है। यह निर्वचन प्रत्यक्ष वृत्याश्रित है। निर्वचनके चलते ही वाक्य भी आलंकारिक हो गये हैं। 7.सोता हि सोममद्रिभि रेमे नमप्सु धावत गव्या वस्त्रे वासयन्त इन्नरो निर्धक्षन्वक्षणाभ्यः । 114 हविर्मिरे के स्वरितः सचन्ते सुन्वन्त एके सवनेषु सोमान् शचीर्मदन्त उत दक्षिणाभिनेज्जिह्मायन्त्यो नरकंपताम ।। 15 प्रथम मन्त्रमें सोतासे सोमका स्पष्ट संकेत प्राप्त हो जाता है | सोता में सु धातुका योग है। सोममें भी सु प्रस्रवणे धातुका योग माना जायेगा। द्वितीय मन्त्रमें सुन्वन्त क्रियापदका सम्बन्ध सोमान्से है । फलतः सुसवने धातु स्पष्ट ही सोम शब्दके लिए परिलक्षित है। यह प्रत्यक्षवृत्याश्रित निर्वचन है । निरुक्त में भी सोमका निर्वचन सुप्रसवे धातू से माना गया है। ऋग्वेद संहितामें परोक्षवृत्याश्रित निर्वचन के भी दर्शन होते हैं। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं :1. "गायन्ति त्वा गायत्रिणोऽर्चन्त्यर्कमर्किणः ब्रह्माणस्त्वा शतक्रतो उद्वंशमिव येमिरे ।।"17 इस मंत्रमें अर्कका निर्वचन प्राप्त होता है। अर्क शब्द अनेकार्थक है। यास्कने अर्कको देव (सूर्य) अन्न, मन्त्र एवं अर्क वृक्ष माना है। अर्क शब्द में अनु १४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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