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________________ महाप्राण भ में परिवर्तन हो गया है। लौकिक संस्कृतमें काष्ट दण्डोंसे जुड़े होने के कारण ही पहिए के बीच वाले भागको भी नाभि कहा जाता है।१३८ भाषा विज्ञानके अनुसार इसे सादृश्य का परिणाम माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार नह बन्धने + इञ् (नहोभश्च) प्रत्यय कर नाभि: शब्द बनाया जा सकता है।१३९ (९१) ज्ञाति :- ज्ञातिका अर्थ सम्बन्धी होता है। निरुक्तके अनुसार-ज्ञाति: संज्ञानात्९४ अर्थात् अच्छी तरह ज्ञात रहने के कारण ज्ञाति कहा जाता है। इसके अनुसार ज्ञातिः शब्द में ज्ञा अववोधने धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार ज्ञा + क्तिन१४० प्रत्यय कर ज्ञाति: शब्द बनाया जा सकता है। (९२) उत्तान :- उत्तान का अर्थ होता है. चारों ओर फैला हुआ। निरुक्तके अनुसार उत्तान : उततान: ऊर्ध्वतानोवार अर्थात् चारों ओर फैला हुआ या ऊपर तक फैला हआ। प्रथम निर्वचनमें उत + तानः दो पदखण्ड हैं। इसमें उत्त स्थित त वर्ण का लोप हो गया है। उत् +तान: = उत्तानः। द्वितीय निर्वचनमें ऊध्व+ तान: दो पंद खण्ड हैं। यहां ऊर्ध्व उत् का वाचक है। प्रथम निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे प्रथम निर्वचन उपयुक्त माना जाएगा। दोनों ही निर्वचनोंमें तन् विस्तारे धातुका योग है। द्वितीय निर्वचन अर्थात्मक महत्त्व रखता है। व्याकरणके अनुसार उत् +तन् +अण् प्रत्यय कर उतान: शब्द बनाया जा । सकता है। (९३) शंयुः :- इसका अर्थ होता है रोग का शमन तथा भय से मुक्ति। निरुक्त के अनुसार शंयुः सुखंयु अर्थात् शम् सुख को कहते हैं तथा यु का अर्थ होगा उसे प्राप्त कराने वाला। यह अनवगत संस्कार का पद है। इसके दोनों पद खण्डों (शम्-युः) में क्रमश: शम् तथा यु धातुका योग है। इन दो धातुओं के अर्थ को स्पष्ट करते हुए यास्क कहते है- शमनं च रोगाणां यावनं च भयानाम् अर्थात् रोगों को शमन करने वाला तथा भन को दूर करने वाला।। शुक्ल यजुर्वेद के प्रसिद्ध द र उब्वट ने अपने मन्त्र भाष्य में एवं महीधर ने अपने वेद दीप भाष्य में में यास्क सम्मत ही इसका अर्थ किया है।- (शु..य. वें ३६।१२) वृहस्पति के पुत्रका नाम भी शंयु था अथापि.शंयुर्हिस्पत्य उच्यते।९४ यह निर्वचन अस्पष्ट है। अर्थात्मकता की पुष्टि के लिए दो धातुओं की कल्पना की गयी है। भाषा विज्ञान की दृष्टि से इसे पूर्ण संगत नहीं माना जाएगा। पाणिनि प्रक्रिया के अनुसार इसमें शम् + यु१४१ प्रत्यय माना गया है। यास्क के समय भी यु प्रत्यय २७२ व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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