SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (८४) उखा :- यह गो का वाचक है। निरुक्तके अनुसार-उस्त्रियेति गो-नाम। उस्त्रविणोऽस्यां भोगा :९४ अर्थात् इससे मनुष्य को अनेक भोग पदार्थकी प्राप्ति होती है। इसके अनुसार उत्रा शब्द में उत्+सु धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जाएगा। उत्+सु = उस्त्रा का अर्थ होगा जिससे दूध सवित होता रहता है। व्याकरणके अनुसार वस् निवासे धातु से रक्१२७ प्रत्यय कर उस्त्र-उस्रा शब्द बनाया जा सकता है। वस् का उस्त्र सम्प्रसारण का परिणाम है।१२८ । (८५) क्राणा :- इसका अर्थ होता है • करते हुए। निरुक्तके अनुसार-क्राणा: कुर्वाणा:९४. अर्थात् इसके अनुसार इस शब्द में कृ धातुका योग है। यह निर्वचन अर्थात्मक दृष्टि से उपयुक्त नहीं है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे अपूर्ण माना जाएगा। (८६) हरि :- हरिः का अर्थ यहां हरे वर्णका सोम है। सोमलतासे सवित सोम हस्ति-वर्ण का होता है। निरुक्तके अनुसार हरिः सोमो हरितवर्ण:९४ अर्थात् हरिः सोम को कहते हैं क्योंकि वह हरित वर्णका होता है। हरिः का अर्थ बन्दर भी होता है क्योंकि वह भी हरित-वर्णका होता है। अयमपीतरो हरिरेतस्मादेव। इस निर्वचन में यास्क ने दृश्यात्मक आधार का सहारा लिया है तथा हरित वर्णके होने के कारण सोम एवं बंदरको हरिः माना। हरितसे हरिः शब्द बना। हरित वर्ण है जिसमें या जो हरे वर्ण का है। इस अर्थमें सोम तथा बन्दर रूढ़ हो गया। इसे लक्षणा का आधार माना जाएगा। लौकिक संस्कृत में हरि: के व्यापक प्रयोग मिलते हैं। यमराज, वायु, इन्द्र, चन्द्रमा, सूर्य, विष्ण, सिंह, किरण, घोड़ा, तोता, सांप, वानर, मण्डूक परलोक आदि कई अर्थों में हरिः शब्द प्रयुक्त होते हैं।१२९ हरित का अर्थ डा. लक्ष्मणस्वरूप ने स्वर्णिम किया है। बन्दर स्वर्णिम वर्ण के प्राप्त होते हैं।१३० दुर्गाचार्य ने हरित वर्णके बन्दर (स्वर्णिम रंग वाला) की चर्चा में रामायण के नाम से एक उद्धरण उपस्थापित किया है।३१ हरे रंग के बन्दर की चर्चा उपलब्ध नहीं होती। हरिः का अर्थ स्वर्णिम रंग वाला मानने पर सोम एवं बन्दर को स्वर्णिम रंग वाला माना जाएगा जो अधिक संगत है क्योंकि कोष ग्रन्थों के अनुसार हरिः पिंगल या कपिल वर्णका भी वाचक है। व्याकरणके अनुसार हृञ् हरणे धातुसे इः प्रत्यय१३२ कर हरिः शब्द बनाया जा सकता है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे अस्पष्ट माना जाएगा। . (८७) शिश्नम् :- इसका अर्थ होता है पुरुष जननेन्द्रिय (उपस्थ)। निरुक्तके २७० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy