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________________ (१२४) खी :- यह नारी का वाचक है। निरुक्त के अनुसार-स्त्रिय: स्त्यायतेरपत्रपण कर्मण:११८ अर्थात् यह शब्द लज्जार्थक स्त्यै धातुके योग से बना है क्योंकि स्त्रियां स्वभाव से ही लज्जाशील हुआ करती हैं।१७६ यह ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोण से उपयुक्त है। इस निर्वचन में गुण (शील) का आधार माना गया है। व्याकरण के अनुसार स्त्यै डूट्१८० १ डीप्१८१ प्रत्यय कर स्त्री शब्द बनाया जा सकता है। स्त्यायतेऽस्यां गर्भ: इति स्त्री:। भाषा विज्ञान के अनुसार भी इसे संगत माना जाएगा। (१२५) मेना :- मेना शब्द स्त्री का वाचक है। निरुक्त के अनुसार-मेना मानयन्त्येना:११८ अर्थात् इन स्त्रियों को पुरुष वर्ग सम्मान देते हैं। इसके अनुसार मेना शब्द में मान पूजायां धातुका योग है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है व्याकरण के अनुसार भी मान् पूजायां धातु से इनच् प्रत्यय कर मेना शब्द बनाया जा सकता है-मान्यते पूज्यते इति मेना। भाषा विज्ञान के अनुसार इस निर्वचन को संगत माना जाएगा। (१२६) ग्ना :- ग्ना शब्द स्त्री का वाचक है। निरुक्त के अनुसार-ग्ना गच्छन्तऐना:११८ अर्थात पुरुष इनके पास (मैथुन धर्म से) जाते हैं।१८२ इसके अनुसार ग्ना शब्द में गम् धातु का योग है। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। लौकिक संस्कृत में इस शब्द का प्रयोग प्राय: नहीं देखा जाता है। भाषा विज्ञान के अनुसार इसे संगत माना जाएगा। (१२७) शेप :- इसका अर्थ होता है-पुंजननांग। निरुक्तके अनुसार-शेप: शपते: स्पृशति-कर्मण:११८ अर्थात शेप: शब्द शप स्पर्शने धातु से बनता है। इसके अनुसार इसका अर्थ होगा-इससे स्त्री स्पर्श की जाती है।८३ इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। अमर कोष के प्रसिद्ध टीकाकार क्षीरस्वामी ने स्त्री योनि के घर्षण करने वाले को शेपः कहा है।१८४ व्याकरण के अनुसार शी +प: प्रत्यय कर शेपः शब्द बनाया जा सकता है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा। (१२८) वैतस :- वैतस का अर्थ भी होता है-पुंस्प्रजनन। निरंक्तके अनुसार वैतसो वितस्तं भवति११८अर्थात् स्त्री स्मरणके पूर्व वह उपक्षीण रहता है।१८५ इसई. अनुसार वैतसः शब्द में वि+तसु उपक्षये धातु का योग है। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरण के अनुसार वेतस + अण प्रत्यय कर वैतसः शब्द बनाया जा सकता है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। २३७ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्त
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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