SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्याख्यातम् भजनीयं भूतानाम् अर्थात् भद्रकी व्याख्या भग शब्दकी व्याख्यासे ही हो गयी। भग भज् धातु से निष्पन्न होता है क्योंकि यह प्राणियों के लिए प्राप्तव्य है।९२ यह कल्याण का वाचक भग है।(२) स्त्री योनि के अर्थ में भग का निर्वचन भज् सेवायाम् धातुसे ही माना जाएगा जिसका प्रदर्शन ऊपर हो चुका है। (३) भग का अर्थ भाग या अंश होगा। यास्क इसके लिए स्पष्ट कोई निर्वचन नहीं प्रस्तुत करते लेकिन ऋग्वेदके मंत्रकी व्याख्या में अपना उक्त अभिमत प्रस्तुत करते हैं :श्रद्धयाग्निः समिध्यते, ऋद्धयां हूयते हविः। श्रद्धां भगस्य मूर्धनि वचसा वेदयामसि।।९३ इस मंत्र की व्याख्या में भगस्यका अर्थ भागधेयस्य किया गया है।९४ स्पष्ट है यहां भग भागके अर्थमें प्रयुक्त है। विभागं आदि शब्दोंसे भी स्पष्ट हो जाता है कि भज् धातु प्रारंभिक अवस्थामें भागके अर्थमें प्रयुक्त होता होगा। कालान्तर में यह सेवा या प्राप्ति अर्थमें भी प्रयुक्त होने लगा अथवा प्रारंभसे ही इसके तीनों अर्थ प्रचलित हैं। कोष ग्रन्थके अनुसार भगके शोभा, योनि, वीर्य , वैराग्य , इच्छा, माहात्म्य, सामर्थ्य, यत्न, यश, धर्म आदि अर्थ होते हैं।९५ भज् धातुसे भग शब्द मानना भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से भी उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार भज् सेवायाम् धातु से घ९६ प्रत्यय कर भगः शब्द बनाया जा सकता है। (७३) मेष :- मेष शब्द भेडाका वाचक है। निरुक्तके अनुसार मेषो मिषते: अर्थात् वह पोषक को देखता रहता है। इसके अनुसार इस शब्दमें मिष् दर्शने धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। मेष शब्द भेड़ाके लिए रूढ़ हो गया है। क्योंकि अन्य पालतु पशु भी अपने पोषकको देखता रहता है। व्याकरण के अनुसार इसे मिष् स्पर्धायां धातुसे अच् प्रत्ययकर बनाया जा सकता है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा। (७४) पशुः- इसका अर्थ होता है जानवर। निरुक्तके अनुसार पशुः पश्यते:६५ अर्थात् वह केवल देखता है। अतः देखनेकी क्रिया की विशेषताके कारण पशु कहा जाता है। इसके अनुसार पशु शब्दमें पश् धातुका योग है।यास्कके समयमें लगता है पश् धातुका रूप प्रचलित थापाणिनीयतन्त्रण्तथा शतपथब्राह्मण९८में भी इसी प्रकार का निर्वचन प्राप्त होता है।इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारउपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा।व्याकरणके अनुसार दृश्+क:दृश्- पश् + २२२ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy