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________________ + यत् प्रत्यय कर मर्यः शब्द बनाया जा सकता है। (६८) योषा :- यह स्त्री का वाचक है । १ निरुक्तके अनुसार योषा यौते :६५ अर्थात् यह शब्द यु मिश्रणेऽमिश्रणे च धातुसे निष्पन्न होता है वह पुरूषको अपनेसे मिलाती है।८२ इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार युष् धातु से अच्८३ +टाप् कर योषा शब्द बनाया जा सकता है। (६९) आत्मा :- यह जीवात्मा या शरीरके अधिष्ठातृ देवका वाचक है। निरुक्तके अनुसार(१)आत्मा ततेर्वा अर्थात् यह शब्द अत् सातत्यगमने धातुसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह सर्वगत होता है। (२) आप्तेर्वा अर्थात् आत्मन् शब्द आप्लृ व्याप्तौ धातुसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह व्याप्त किएहुए है। (३) अपिवाप्तइव स्यात् अर्थात् यह आत्मा आप्तके समान होती है। आप्तसे आत्मा शब्द सादृश्य पर आधारित है। इसके अनुसार आप्लृ व्याप्तौ धातुसे ही आत्मा शब्द माना जाएगा। (४) यावत् व्याप्ति भूत इति६५ अर्थात् यह सभी वस्तुओं को व्याप्त करती है। इसके अनुसार भी आत्मन् शब्दमें आप्लृ धातुका ही योग माना जाएगा। सभी निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। विभिन्न अर्थोंकी उपलब्धिके लिए इतने निर्वचन प्रस्तुत किए गए हैं। इन निर्वचनोंके आधार पर आत्मन् शब्दमें दो धातुका संकेत पाया जाता है प्रथम निर्वचनके आधार पर अत् सातत्यगमने धातुका तथा शेष निर्वचनों के आधार पर आप्लृव्याप्तौ धातुका । भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे ये निर्वचन उपयुक्त हैं । यास्कने आत्माकी व्याप्तता तथा व्यापकताका निर्देश कई स्थलों पर किया है।८४ उपनिषद्, गीता आदि ग्रन्थोंमें भी आत्माकी व्यापकताका वर्णन प्राप्त होता है । ८५ यास्कका एक देवता बाद आत्माकी व्यापकता एवं सर्वक्रियाशीलताका द्योतक है। यह शब्द भारतीय दर्शन साहित्यमें प्रसिद्ध एवं व्यापक है। व्याकरणके अनुसार अत् + मनिन् प्रत्ययकर आत्मन्- आत्मा शब्द बनाया जा सकता है। (७०) जार :- जार: शब्द आदित्यका वाचक है । निरुक्तके अनुसार- (१) जारःआदित्यःरात्रेःजरयिता६५ अर्थात् वह रात्रिको जीर्ण करने वाला होता है। इसके अनुसार जार: शब्द में जृ वयौहानौ धातुका योग है। (२) स एवं भासाम् जरयिता६५ अर्थात् वह नक्षत्रों एवं चंद्रमा आदिके प्रकाशका विनाशक है। सूर्यके उदय होने पर चन्द्रमा एवं नक्षत्रोंका प्रकाश नष्ट हो जाता है। इसके अनुसार भी इस शब्दमें जृ वयो २२० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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