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________________ (६०) खम :- यह इन्द्रियका वाचक है। यास्कके अनुसार . खं खनते :६५ अर्थात् खम् शब्द अवदारणार्थक खन् धातुसे बनता है क्योंकि मुख आदि इन्द्रियोंके स्थान खुदे होते हैं। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। अर्थात्मकता आकृति पर आश्रित है। व्याकरणके अनुसार इसे खर्च गतौ या खन् दारणे धातुसे डः प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जाएगा। (६१) रूपम् : इसका अर्थ सौंदर्य होता है। यास्कके अनुसार-रूपं रोचते:६५ अर्थात् यह शब्द रूच दीप्तौ धातुसे निष्पादित होता है क्योंकि यह टीप्त होता है, सुन्दर लगता है या चमकता है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे यह निर्वचन सर्वथा संगत है। व्याकरणके अनुसार इसे रू + प: (दीर्घश्च) रूपम७० या रूप् + अच् प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। (६२) सत्यम् :- इसका अर्थ होता है-सच या यथार्थ-कथन।७१ यास्कने इसके लिए दो निर्वचन प्रस्तुत किए हैं. (१) सत्सु तायते अर्थात् यह सज्जनोंमें विस्तृत होता है। इसके अनुसार इस शब्दमें दो पद खण्ड हैं स + त्य। स सज्जन का वाचक है तथा अंतिम पद त्य ताय सन्तान पालनयो : धातु से निष्पन्न रूप। (२) सत्प्रभवं भवतीति वा अर्थात् इसकी उत्पत्ति सज्जनोंसे होती है। इसके अनुसार इसमें सत् + य पद खण्ड हैं। सत् सज्जन का वाचक है तथा य प्रत्यय। यास्क के समय में लगता है त्य तद्धित प्रत्यय रहा है। वे त्य प्रत्यय को भी तन विस्तारे धातु से निष्पन्न मानते हैं। अपत्य शब्द में भी इसी प्रकार त्य प्रत्यय होता है। अप + त्य अपत्य/७२ अर्थात्मक दृष्टिकोणसे दोनों निर्वचन उपयुक्त हैं। प्रथम निर्वचनको ध्वन्यात्मक दृष्टि से भी संगत माना जा सकता है। यद्यपि यह दीर्घ कल्पना का परिणाम है। व्याकरणके अनुसार सत् + यत् = सत्यम् शब्द बनाया जा सकता है। (६३) वनसूं :- इसका अर्थ होता है वन में विचरण करने वाला। निरुक्तके अनुसार वनगुं वन गामिनों अर्थात् वनगुं वनगामी होते हैं। इसके आधार पर वनर्गु शब्दमें वनगम् धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक आधार किंचित् शिथिल है। इसे भाषा विज्ञानके अनुसार पूर्ण संगत नहीं माना जाएगा। (६४) तस्कर: तस्करका अर्थ चोर होता है। नैरुक्तके अनुसार तत्करो भवति यत्पापकमिति नैरुक्ताः अर्थात् जो निन्दित कार्य को करनेवाला होता है उसे तस्कर कहते हैं। इसके अनुसार तत्+कृ कर = तस्कर:शब्द हैतत् पापकम् का वाचक है २१७: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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