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________________ तुल्य होती है। करोड़ का वाचक अर्बुद शब्द मेघवाचक अर्बुदके सादृश्य पर ही माना गया है। वर्षाके समय बादल बहुत वृहत् होता है उसी प्रकार अर्बुद (करोड़) संख्या बड़ी होती है । ५२ यह निर्वचन अस्पष्ट है । ५३ इन निर्वचनोंका अर्थगत साम्य कल्पना पर आधारित है। कोष ग्रन्थोंमें अर्बुद दस करोड़का वाचक है। १४ व्याकरणके अनुसार अरं वुन्दति-अर् + उबुन्दिर् निशामने धातुसे बनाया जा सकता है । ५५ या अव् हिंसायाम् + उदच् = अर्बुदः भी बनाया जा सकता है। (४०) खल :- इसके अर्थ होते हैं-संग्राम, खलिहान आदि । निरुक्तमें भी कई अर्थोंमें इसके निर्वचन प्राप्त होते हैं। संग्रामके अर्थ में (१) खलतेर्वा अर्थात् इसमें शत्रु मथे जाते हैं। इस निर्वचनके अनुसार खलः शब्दमें मथनार्थक खल् धातुका योग है। (२) स्खलतेर्वा अर्थात् इसमें शत्रु मारे जाते हैं। इसके अनुसार इस शब्दमें हिंसार्थक स्खल धातुका योग है। खलिहान वाचक खल शब्द भी इन्हीं निर्वचनोंसे माना जाएगा । ५६ खलिहान में भी अन्न मथे जाते हैं या चूर्ण किए जाते हैं। खलिहान में अन्नकी दौनी होती है। अन्न चूर्ण करनेके पात्र भी खल कहलाते हैं। तथा यह भी इन्हीं निर्वचनोंसे माना जाएगा। इस खलमें भी अन्न मथे जाते हैं। या चूर्ण किए जाते हैं। समास्कन्नो भवति३५ खलिहानका वाचक खल शब्दका अर्थ होगा जो धान्यों से दबाया गया हो। स्कन्द् अः कद् + अः खलः । खलिहान या दवा कूटने का पात्र वाचक खल शब्द सादृश्यके आधार पर माना गया है। भाषा विज्ञानके अनुसार इन निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरण के अनुसार इसे खल् + अच् प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। (४१) आक्षाण: :- इसका अर्थ होता है व्यापक । निरुक्तके अनुसार - आक्षा आश्नुवाण:३५ अर्थात् जो व्याप्त हो। इसके अनुसार इस शब्दमें अशुव्याप्तौ धातुका योग है। जो व्याप्त होता है उसे आक्षाण कहते हैं । ५७ इसका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त नहीं हैं। अर्थात्मक दृष्टिकोणसे यह उपयुक्त है। (४२) आपान :- इसका अर्थ होता है- व्यापक । निरुक्त के अनुसारआपान आप्नुवान:३५ अर्थात् जो व्याप्त हो उसे आपान कहते हैं। इसके अनुसार इस में आप्लृ व्याप्तौ धातु का योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। लौकिक संस्कृत में आपान शराब आदि के पीने के अर्थ में प्रयुक्त होता है। व्याकरण के अनुसार आ + पा + ल्युट् प्रत्यय कर आपान शब्द बनाया जा सकता है। भाषा विज्ञान के अनुसार इसे २१२ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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