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________________ (२४) बलम् :- इसका अर्थ ताकत या शक्ति होता है। निरुक्तके अनुसार बलं भरं भवति विभर्ते:३५ अर्थात् यह भरण एवं पोषण करता है। इसके अनुसार इसमें डुभञ्धारण पोषणयो: धातु का योग हैं। भृ धातुसे भर तथा भर का ही बल माना गया। भ का ब में परिवर्तन अल्प प्राणीकरण तथा र एवं ल का अमेद होकर भरम्-बलम् हो गया। यह निर्वचन धातुज सिद्धान्तसे सीधा सम्बद्ध है।६ भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जाएगा। व्याकरण के अनुसार बल् + क प्रत्यय कर बलम् शब्द बनाया जा सकता है। (२५) धनम् :- धन अर्थ का वाचक है। निरुक्तके अनुसार- धीनोतीतिसतः अर्थात् यह तृप्त करता है। इस निर्वचनके अनुसार यह शब्द तृप्त्यर्थक घिवि धातु के योगसे निष्पन्न होता है। यह निर्वचन अर्थात्मक आधार पर आधारित है। ध्वन्यात्मक दृष्टिकोणसे यह पूर्ण संगत नहीं है। धा धातु से न प्रत्यय कर धनम् शब्द बनाना भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उपयुक्त होगा। व्याकरणके अनुसार धन् धान्ये धातु से अच्४७ प्रत्यय कर धनम् बनाया जा सकता है। (२६) क्षिप्रम् :- यह शीघ का वाचक है। निरुक्तके अनुसार . संक्षिप्तो विकर्ष :३५ अर्थात् विक्षिप्त कार्य संक्षिप्त हो जाता है। कार्य शीघ सम्पादित हो जाते हैं। इस निर्वचन के अनुसार क्षिप्र शब्दमें क्षिप् धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे सर्वथा संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार क्षिप् प्रेरणे धातु से रक्८ प्रत्यय कर क्षिप्र शब्द बनाया जा सकता है। (२७) अन्तिकम् :- इसका अर्थ होता है निकट, नजदीक। निरुक्त के अनुसार आनीतं भवति अर्थात् यह दूर से निकट लाया होता है। इसके अनुसार अन्तिक शब्द में आनी धातका योग है। अर्थात्मक महत्व से यह निर्वचन उपयुक्त है। ध्वन्यात्मक आधार इसका उपयुक्त नहीं है। व्याकरणके अनुसार यह तद्धितान्त शब्द है। अन्तिक शब्दको अन्तठन४९ प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। अन्त + ठन = अन्तिक (ठ का इक)। (२८) संग्रामः-इसका अर्थ होता है युद्ध। निरुक्तमें इसके कई निर्वचन प्राप्त होते है-(१) संगमनद्वा३५ अर्थात् (युद्ध के लिए) एकत्र होते हैं। इसके अनुसार संग्राम शब्द में सम् +गम् धातुका योग है।(२)संगरणद्वा अर्थात्(युद्ध में) परस्पर ध्वनि करते हैं। इसके अनुसार इस शब्दमें समगृ शब्दे धातुका योग है। (३) संगतौ ग्रामावितिवा५ अर्थात् दो समूह युद्ध के लिए एकत्र होते हैं।इसके अनुसार संग्राम शब्दमें सम्+ग्राम् २०८ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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