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________________ होगा । कक्ष्यका अर्थ होता है कुक्षि तथा उसमें होने वालेको कक्ष्या कहेंगे। कक्ष्या शब्दके निर्वचनमें यास्ककी कल्पना शक्तिका पता चलता है जिसे उच्च कल्पनाकी श्रेणीमें नहीं ला सकते । समानताके कारण ही मनुष्यके कक्ष्यका भी नाम पड़ा तत्सामान्यान्मनुष्य कक्षो बाहुमूल सामान्यादश्वस्य अर्थात् इस समानताके कारण ही मनुष्यकी कांख है तथा बाहुमूलके.सादृश्यके कारण अश्वकी कांखको भी कक्ष्य कहा जाता है। कक्ष्या तद्धित शब्द है। इसे कष घर्षणे धातुसे मानने पर ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत होता है। शेषनिर्वचनों का अर्थात्मक महत्त्व है। कक्ष्यमें सादृश्यका आधार माना गया है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से कष् घर्षणे धातुसे कक्ष्या उपयुक्त है। कक्ष्या अंगुलिका भी वाचक है- प्रकाशयन्ति कर्माणि इसके अनुसार यह शब्द काश् दीप्तौ धातुसे बनता है, क्योंकि यह कर्मोको प्रकाशित करती है। इसका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त नहीं है । मात्र इसका अर्थात्मक महत्त्व है। लौकिक संस्कृतमें कक्ष्यका प्रयोग अंगुलिके लिए नहीं पाया जाता । यह शब्द वाहुमूल आदिका वाचक है।” व्याकरणके अनुसार इसे कक्ष् + यत् कर कक्ष्यः बनाया जा सकता है। कक्षायां मध्ये भवा कक्ष्या” कक्षके मध्यमें होने वाली कक्ष्या कहलाती है। कक्ष्यः- कक्ष्याः । (48) राजपुरूष :- केवल समासका प्रदर्शन करते हैं। राज्ञः पुरूषः राजाका पुरूष । इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा | व्याकरणके अनुसार भी यह षष्ठी तत्पुरूषका परिणाम ही माना जायगा। .. (49) विश्चकद्राकर्ष :- यह एक सामासिक शब्द है। वि तथा चकद्र कुतेकी चाल के लिए प्रयुक्त होता है द्रा धातु कुत्सा एवं गति अर्थ में होता है। कुत्तों के सदृश जीवन यापन करने वाला पुरूष विश्चकंद्र कहलाता है तथा उस पुरूषको दण्डके लिए न्यायालयमें ले जाने वाला विश्चकद्राकर्ष कहलाता है। चकद्राति कद्रातीति सतोऽनर्थकोऽभ्यासः तदस्मिन्नस्तीति विश्चकद्राकर्षः100 डा० वर्मा के अनुसार यह निर्वचन अस्पष्ट है। 101 वस्तुतः यास्क के इस निर्वचन में धातु एवं प्रत्यय. का स्पष्टतः निर्देश नहीं प्राप्त है। विश् का अर्थ मनुष्य होता है तथा कद का अभ्यास चकद्र होगा। अतः विश् + चकद्र - १५८: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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